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________________ आपके जीवन का यथार्थ है। आप कहते हैं कि यदि उससे यथार्थ को समझने और जीने की दृष्टि न मिली होती, तो मेरे आदर्श भी शायद यथार्थ नहीं बन पाते। सेवा और सहयोग के साथ जीवन के कटु सत्यों को भोगने में, जो साहस उसने दिलाया, वह उसका सबसे बड़ा योगदान है। आप कहते हैं कि शिष्यों में श्यामनन्दन झा और डॉ. अरूणप्रताप सिंह ने जो निष्ठा एवं समर्पण दिया, वही ऐसा सम्बल है, जिसके कारण शिष्यों के प्रत्युप्रकार की वृत्ति मुझमें जीवित रह सकी, अन्यथा वर्तमान परिवेश में वह समाप्त हो गई होती। मित्रों में भाई माणकचन्द्र के उपकार का भी आप सदैव स्मरण करते हैं। आप कहते हैं कि उसने अध्ययन के द्वार को पुनः उद्घाटित किया था। समाज-सेवा के क्षेत्र में भाई मनोहरलाल और श्री सौभाग्यमल जी जैन वकीस सा आपके सहयोगी एवं मार्गदर्शक रहे हैं। आप यह मानते हैं कि “मैं जो कुछ भी हूँ, वह पूरे समाज की कृति हूँ, उसके पीछे अनगिनत हाथ रहे हैं। मैं किन-किन का स्मरण करूँ, अनेक तो ऐसे भी होंगे, जिनकी स्मृति भी आज शेष नहीं है।" वस्तुतः व्यक्ति अपने-आप में कुछ नहीं है, वह देश, काल, परिस्थिति और समाज की निर्मिति होता है। जो इन सबके अवदान को स्वीकार कर उनके प्रत्युपकार की भावना रखता है, वह महान् बन जाता है, चिरजीवी हो जाता है, अन्यथा अपने ही स्वार्थ एवं अहं में सिमटकर समाप्त हो जाता है। प्राप्त सम्मानों की सूची 1. प्रदीपकुमार रामपुरिया पुरस्कार, वर्ष 1986 2. प्रणवानन्द पुरस्कार (जैन भाषा दर्शन पर) वर्ष 1987 3. डिप्टीमल पुरस्कार, वर्ष 1992 आचार्य हरित पुरस्कार वर्ष 1994 5. प्रदीपकुमार रामपुरिया पुरस्कार, (द्वितीय बार) वर्ष 1998 6. विद्या वारिधि सम्मान, वर्ष 2003 7. कला मर्मज्ञ सम्मान, वर्ष 2006 8. उ.प्र. शासन सम्मान (प्राकृत ग्रन्थ के लिए) 9. जैना का अध्यक्षीय सम्मान् वर्ष 2007 10. वागर्थ सम्मान (म.प्र. शासन) वर्ष 2007 11. गौतम गणधर सम्मान वर्ष 2008 12. आचार्य तुलसी प्राकृत सम्मान वर्ष 2008 13. विद्याचन्द्र सूरी सम्मान, वर्ष 2011 . सागरमल जीवनवृत्त 673
SR No.006274
Book TitleJain Darshan Me Tattva Aur Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ambikadutt Sharma, Pradipkumar Khare
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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