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________________ धर्मनिरपेक्षता और बौद्धधर्म वैज्ञानिक प्रगति के परिणाम स्वरूप आज हमारा विश्व सिमट गया है । विभिन्न संस्कृतियों और विभिन्न धर्मों के लोग आज एक दूसरे के निकट सम्पर्क में हैं। साथ ही वैज्ञानिक एवं औद्योगिक प्रगति के कारण और विशिष्टिकरण से हम परस्पराश्रित हो गये हैं। आज किसी भी धर्म और संस्कृति के लोग दूसरे धर्मों और संस्कृतियों से निरपेक्ष होकर जीवन नहीं जी सकते हैं । हमारा दुर्भाग्य यह है कि इस परिवेशजन्य निकटता और पारस्परिक निर्भरता के बावजूद आज मनुष्य मनुष्य के बीच हृदय की दूरियाँ बढ़ती जा रही हैं । वैयक्तिक या राष्ट्रीय स्वार्थलिप्सा एवं महत्वाकांक्षा के कारण हम एक-दूसरे से कटते चले जा रहे हैं । धर्मों और धार्मिक सम्प्रदायों के संघर्ष बढ़ते जा रहे हैं और मनुष्य आज भी धर्मो के नाम पर दमन, अत्याचार, नृशंसता और रक्तप्लावन का शिकार हो रहा है । एक धर्म और एक सम्प्रदाय के लोग दूसरे धर्म और सम्प्रदाय को मटियामेट करने पर तुले हुए हैं । इन सब परिस्थितियों में आज राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर धर्मनिरपेक्षता की चर्चा हमारे सामने आई है, ताकि धर्मों के नाम पर होने वाली इन सब दुर्घटनाओं से मानवता को बचाया जा सके । इन सन्दर्भ में सर्वप्रथम हमें यह विचार करना होगा कि धर्मनिरपेक्षता से हमारा क्या, तात्पर्य है? वस्तुतः धर्मनिरपेक्षता को अंग्रेजी शब्द 'सेक्युलरिज्म' का हिन्दी पर्यायवाची मान लिया गया है। हम अक्सर 'सेक्युलर स्टेट' की बात करते हैं। यहाँ हमारा तात्पर्य ऐसे राज्य / राष्ट्र से होता है जो किसी धर्म विशेष को राष्ट्रीय धर्म के रूप में स्वीकार नहीं करके अपने राष्ट्र में प्रचलित सभी धर्मों को अपनी-अपनी साधना पद्धति को अपनाने की स्वतंत्रता, अपने विकास के समान अवसर और सभी के प्रति समान आदर भाव प्रदान करता है । अतः राष्ट्रीय नीति के सन्दर्भ में ‘सेक्युलरिज्म' का अर्थ धर्मविहीनता नहीं अपितु किसी धर्म विशेष को प्रमुखता न देकर, सभी धर्मों के प्रति समव्यवहार है । जो लोग धर्मनिरपेक्षता का अर्थ धर्म अथवा नीति विहीनता करते हैं, वे भी एक भ्रान्त धारणा को प्रस्तुत करते हैं । कोई भी व्यक्ति अथवा राष्ट्र धर्मविहीन नहीं हो सकता है, क्योंकि धर्म एक जीवनशैली है। सेक्युलरिज्म या धर्मनिरपेक्षता के लिए महात्मा गांधी ने हमें धर्मदर्शन 649
SR No.006274
Book TitleJain Darshan Me Tattva Aur Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ambikadutt Sharma, Pradipkumar Khare
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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