SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 603
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन साहित्य में दार्शनिक दृष्टि से जहाँ तक चार्वाक दर्शन के तर्कपुरस्सर प्रस्तुतीकरण एवं समीक्षा का प्रश्न है- सर्वप्रथम उसे आगमिक व्याख्या साहित्य के एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ विशेषावश्यकभाष्य (ईस्वी सन् की सातवीं शती) में देखा जा सकता है। जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण द्वारा ईस्वी सन् की छठी शती में प्राकृत भाषा में निबद्ध इस ग्रन्थ की लगभग 500 गाथायें तो आत्मा, कर्म, पुण्य-पाप, स्वर्ग-नरक, बन्धन-मुक्ति आदि अवधारणाओं की तार्किक समीक्षा से संबंधित हैं। इस ग्रन्थ का यह अंश गणधरवाद के नाम से जाना जाता है और अब स्वतंत्र रूप से प्रकाशित भी हो चुका है। प्रस्तुत निबंध में इस समग्र चर्चा को समेट पाना सम्भव नहीं था, अतः इस निबंध को यहीं विराम दे रहे हैं। 00 590 जैन दर्शन में तत्त्व और ज्ञान
SR No.006274
Book TitleJain Darshan Me Tattva Aur Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ambikadutt Sharma, Pradipkumar Khare
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy