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________________ यह कथन भास्कराचार्य को प्रकारान्तर से अनेकांतवाद का सम्पोषक ही सिद्ध करता है। अन्यत्र भी 'भेदाभेद रूपं ब्रह्मेति समधिगत' कहकर उन्होंने अनेकांत दृष्टि का ही पोषण किया है। भास्कराचार्य के समान यति प्रवर विज्ञान भिक्षु ने ब्रह्मसूत्र पर विज्ञानामृत भाष्य लिखा है, उसमें वे अपने भेदाभेदवाद का न केवल पोषण करते हैं, अपितु अपने मत की पुष्टि में कर्मपुराण, नारद पुराण, स्कन्द पुराण आदि से सन्दर्भ भी प्रस्तुत करते हैं। यथा - त एते भवद्रूपं विश्वं सदासदात्कम्। चैतन्यापेक्षया प्रोक्तं व्यमादि सकलं जगत्।। असत्यं सत्यरूपं तु कम्भकुण्डाद्यपेक्षया।। ये सभी सन्दर्भ अनेकांत के सम्पोषक हैं यह तो स्वतः सिद्ध है। इसी प्रकार निम्बार्काचार्य ने भी अपनी ब्रह्मसूत्र की वेदान्त परिजात सौरभ नामक टीका में तन्तुसमन्वयात् (1/1/4) की टीका करते हुए लिखा है- सर्वभिन्ना भिन्नो भगवान् वासुदेवो विश्वात्मैव जिज्ञासा विषय इति।। शुद्धाद्वैत मत के संस्थापक आचार्य वल्लभ भी ब्रह्मसूत्र के श्री में लिखते हैं - सर्ववादानवसरं नानावादानुरोधि च। अनन्तमूर्ति तद् ब्रह्म कूटस्थं चलमेव च।। विरुद्ध सर्वधर्माणां आश्रयं युक्त्यगोचरं। अर्थात् वह अनन्तमूर्ति ब्रह्म कूटस्थ भी है और चल (परिवर्तनशील) भी है, उसमें सभी वादों के लिए अवसर (स्थान) है, वह अनेक वादों का अनुरोधी है, सभी विरोधी धर्मों का आश्रय है और युक्ति से अगोचर है। यहाँ रामानुजाचार्य जो बात ब्रह्म के सम्बन्ध में कह रहे हैं, प्रकारान्तर से अनेकान्तवादी जैन दर्शन तत्त्व के स्वरूप के सम्बन्ध में कहता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि न केवल वेदान्त में अपितु ब्राह्मण परम्परा में मान्य छहों दर्शनों के दार्शनिक चिन्तन में अनेकांतवादी दृष्टि अनुस्यूत है। श्रमण परम्परा का दार्शनिक चिन्तन और अनेकांत भारतीय दार्शनिक चिन्तन में श्रमण परम्परा के दर्शन न केवल प्राचीन है, अपितु वैचारिक उदारता अर्थात् अनेकांत के सम्पोषक भी रहे हैं। वस्तुतः भारतीय श्रमण परम्परा का अस्तित्व औपनिषदिक काल से भी प्राचीन है, उपनिषदों में श्रमणधारा और वैदिक धारा का समन्वय देखा जा सकता है। उपनिषद्-काल में दार्शनिक चिन्तन की विविध धाराएं अस्तित्व में आ गई थी, अतः उस युग के जैन अनेकान्तदर्शन 523
SR No.006274
Book TitleJain Darshan Me Tattva Aur Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ambikadutt Sharma, Pradipkumar Khare
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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