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सास्वादन, सम्यक्, मिथ्या दृष्टि और सास्वादन (सासादन) और अयोगी केवली अयोगी केवली दशा का पूर्ण अभाव अवस्था का पूर्ण अभाव, किन्तु
| सम्यक्-मिथ्यादृष्टि की उपस्थिति अप्रमत्तसंयत्, अपूर्वकरण (निवृत्ति बादर) | अप्रमत्तसंयत, अपूर्वकरण (निवृत्ति बादर) अनिवृत्तिकरण (अनिवृत्ति बादर) जैसे |अनिवृत्तिकरण (अनिवृत्ति बादर) जैसे नामों नामो अभाव उपशम और क्षय का का अभाव उपशम और क्षपक का विचार का विचार है, किन्तु 8वें गुणस्थान से | है, किन्तु 8वें गुणस्थान से उपशम श्रेणी उपशम और क्षयिक श्रेणी से अलग अलग-अलग अरोहण होता है ऐसा विचार -अलग आरोहण होता है ऐसा विचार नहीं है। नहीं है। पतन की अवस्था का कोई चित्रण नहीं पतन की अवस्था का कोई चित्रण नहीं 1. मिथ्यात्व
मिच्छादिट्ठी (मिथ्यादृष्टि) 2. - 3. -
सम्मा-मिच्छाइट्ठी (मिस्सगं) 4. सम्यक्दृष्टि
सम्माइट्ठी (सम्यक्दृष्टि) अविरदीए 5. श्रावक
विरदाविरदे (विरत-अविरत) देसविरयी
(सागार) संजमासंज 6. विरत
विरद (संजम) 7. अनन्तवियोजक
दसणमोह उपवसामगे (दर्शनमोह उपशामक) 8. दर्शनमोह क्षपक
दंसणमोह खवगे (दर्शन मोह-क्षपक) 9. (चारित्रमोह) उपशम
चरित्तमोहस्स उपसामगे (उवसामणा) 10. -
सुहुमरागी (सुहुमम्हि सम्पराये) 11. उपशान्त (चारित्र) मोह | उवसत कसाय
(चारित्रमोह) क्षपक 12. क्षीणमोह
खीणमोह (छदुमत्योवेदगी) 13. जिन
जिण केवली सव्वण्हू-सव्वदरिसी (ज्ञातव्य है कि चूर्णि में ‘सयोगिजिणो' शब्द है मूल में नहीं है) | चूर्णि में योगिनिरोध का उल्लेख है
खवगे
जैन दर्शन में तत्व और ज्ञान