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________________ हैं। वही परमधान भी है, वही परमात्मस्वरूप आत्मा का निज स्थान है, जिसे प्राप्त कर लेने पर पुनः निवर्तन नहीं होता है । "" उसे अक्षय ब्रह्म परमतत्व स्वभाव (आत्मा की स्वभाव दशा) और अध्यात्म भी कहा जाता है ।" गीता की दृष्टि में मोक्ष निर्वाण है, परम शान्ति का अधिस्थान है ।" जैन दर्शनिकों के समान गीता भी यह स्वीकार करती हैं कि मोक्ष सुखावस्था है। गीता के अनुसार मुक्तात्मा ब्रह्मभूत होकर अत्यन्त सुख (अनन्त सौख्य) का अनुभव करता है । " यद्यपि गीता एवं जैन दर्शन में मुक्तात्मा में जिस सुख की कल्पना की गई है वह न ऐन्द्रिय सुख हैं न वह मात्र दुःखाभाव रूप सुख है वरन् वह अतीन्द्रिय ज्ञानगम्य अनश्वर सुख है। 20 -- बौद्ध दर्शन में निर्वाण का स्वरूप • भगवान बुद्ध की दृष्टि में निर्वाण का स्वरूप क्या है? यह प्रश्न प्रारंभ से विवाद का विषय रहा है । स्वयं बौद्ध दर्शन के आवन्तर संप्रदायों में भी निर्वाण के स्वरूप को लेकर आत्यंतिक विरोध पाया है । आधुनिक विद्वानों ने भी इस संबंध में परस्पर विरोधी निष्कर्ष निकाले हैं जो एक तुलनात्मक अध्येता को अधिक कठिनाई में डाल देता है । वस्तुतः इस कठिनाई का मूल कारण पालि निकाय में निर्वाण का विभिन्न दृष्टियों से भिन्न-भिन्न प्रकार से विवेचन किया जाना है । श्री पुसें" एवं प्रोफेशर नलिनाक्ष दत्त" ने बौद्ध निर्वाण के संबन्ध में विद्वानों के दृष्टिकोणों को निम्न रूप से वर्गीकृत किया है:-- 1. निर्वाण एक अभावात्मक तथ्य है। 2. निर्वाण अनिर्वचनीय अव्यय अवस्था है 422 1 3. निर्वाण की बुद्ध ने कोई व्याख्या नहीं दी है । 4. निर्वाण भावात्मक, विशुद्ध एवं पूर्ण चेतना की अवस्था है 1 बौद्ध दर्शन के अवान्तर प्रमुख सम्प्रदायों का निर्वाण के स्वरूप के संबंध में भिन्न प्रकार से दृष्टि भेद है - - 1. वैभाषिक संप्रदाय : वैभाषिक सम्प्रदाय के अनुसार निर्वाण संस्कारों या संस्कृत धर्मों का अभाव है क्योंकि संस्कृत धर्मता ही अनित्यता है, यही धर्मों का बन्धन है, यही दुःख है, लेकिन निवार्ण तो दुःख निरोध है, बन्धना - भाव है और इसलिये वह एक असंस्कृत धर्म है और असंस्कृत धर्म के रूप में उसकी भावात्मक सत्ता है। वैभाषिक मत में निर्वाण के स्वरूप को अभिधर्म कोष व्याख्या में निम्न प्रकार से बताया गया है “निर्वाण नित्य, असंस्कृत स्वतंत्र सत्ता, पृथक्मत, सत्य पदार्थ द्रव्य सत् है ।" 23 निर्वाण में संस्कार या पर्यायों का अभाव होता है लेकिन यहां संस्कारों के अभाव का अर्थ अनस्तित्व नहीं है । वरन् एक भावात्मक अवस्था ही है । निर्वाण असंस्कृत धर्म है। प्रो. शरवात्स्की ने वैभाषिक निर्वाण को अनन्त मृत्यु कहा है। उनके अनुसार निर्वाण आध्यात्मिक अवस्था नहीं है वरन् चेतना एवं क्रिया शून्य जैन दर्शन में तत्त्व और ज्ञान
SR No.006274
Book TitleJain Darshan Me Tattva Aur Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ambikadutt Sharma, Pradipkumar Khare
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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