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भारतीय परम्परा में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की मूल्य-दृष्टियों की विविधता मूल्य-बोध की सपेक्षता को ही सूचित करती है । पश्चिम में भी सत्य, शिव एवं सुन्दर के सम्बन्ध में इसी प्रकार का दृष्टिभेद परिलक्षित होता है । कुछ लोग सत्य को परम मूल्य मानते हैं तो दूसरे कुछ लोग शिव (कल्याण) को अथवा सुन्दर को परम मूल्य मानते हैं । भौतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों की श्रेष्ठता अथवा कनिष्ठता के सम्बन्ध में भी जो मतभेद हैं वे सभी दृष्टि - सापेक्ष ही हैं । वस्तुतः जो किसी एक दृष्टि से सर्वोच्च मूल्य हो सकता है वही दूसरी दृष्टि से निम्न मूल्य भी सिद्ध हो सकता है। बलवत्ता या तीव्रता की दृष्टि से जहाँ जैविक मूल्य सर्वोच्च ठहरते हैं, वही विवेक एवं संयम की दृष्टि से आध्यात्मिक एवं अतिजैविक मूल्य उच्चतर माने जा सकते हैं । पुनः किसी एक ही दृष्टि के आधार पर मूल्यों की तारतम्यता का निर्धारण भी सम्भव नहीं है, क्योंकि मूल्य और मूल्यदृष्टियाँ बहुआयामी हैं, वे एक-रेखीय न होकर बहुरेखीय हैं। एक मूल्य पर एक दृष्टि से विचार किया जा सकता है। इस प्रकार मूल्य-बोध और उनकी तारतम्यता का बोध दृष्टि - सापेक्ष है और दृष्टि - चेतना के विविध पहलुओं के बलाबल पर निर्भर करता है । पुनश्च, चेतना के वासनात्मक और विवेकात्मक पहलुओं में कब, कौन, कितना बलशाली होगा यह बात भी आंशिक रूप से देश-काल और परिस्थितियों पर निर्भर होगी और आंशिक रूप से व्यक्ति के संस्कार और मूल्य - दृष्टि पर भी । इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि मूल्य-बोध, मूल्य - दृष्टि पर भी । इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि मूल्य-बोध-मूल्य दृष्टि पर निर्भर करता है और मूल्य-दृष्टि स्वयं मूल्य-बोध पर। वे अन्योन्याश्रित हैं, बीज - वृक्ष न्याय के समान उनमें से किसी की पूर्वता - प्राथमिकता का निश्चय कर पाना कठिन है ।
डब्ल्यू.एम. अरबन का आध्यात्मिक मूल्यवाद और भारतीय मूल्य-दर्शन
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अरबन' के अनुसार मूल्यांकन एक निर्णयात्मक प्रक्रिया है, जिसमें सत् के प्रति प्राथमिक विश्वासों के ज्ञान का तत्त्व भी होता है । इसके साथ ही उसमें भावात्मक तथा संकल्पात्मक अनुक्रिया भी है । मूल्यांकन संकल्पात्मक प्रक्रिया का भावपक्ष है। अरबन मूल्यांकन की प्रक्रिया में ज्ञानपक्ष के साथ-साथ भावना एवं संकल्प की उपस्थिति भी आवश्यक मानते हैं । मूल्यांकन में निरन्तरता का तत्त्व उनकी प्रामाणिकता का आधार है । जितनी अधिक निरन्तरता होगी उतना ही अधिक वह प्रामाणिक होगा । मूल्यांकन और मूल्य में अन्तर स्पष्ट करते हुए अरबन कहते हैं कि मूल्यांकन मूल्य को निर्धारित नहीं करता, वरन् मूल्य ही अपनी पूर्ववर्ती वस्तुनिष्ठता के द्वारा मूल्यांकन को निर्धारित करते हैं
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जैन दर्शन में तत्त्व और ज्ञान