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समाचरण की बाह्य एकरूपता में भी नैश्चयिक दृष्टि आचार की भिन्नता हो सकती है । वस्तुतः आचार दर्शन के क्षेत्र में नैश्चयिक आचार वह केन्द्र है जिसके आधार से व्यवहारिक आचार के वृत्त बनते हैं । एक केन्द्र से खींचे गये अनेक वृत्त बाह्य रूप से भिन्न -भिन्न प्रतीत होते हुए भी अपने केन्द्र की दृष्टि से एक ही रूप माने जाते हैं, उनमें परिधिगत विभिन्नता होते हुए भी केन्द्रगत एकता होती है। जैनदृष्टि के अनुसार निश्चय आचार सारे बाह्य आचरण का केन्द्र है, सार होता है | 20
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आचार दर्शन के क्षेत्र में निश्चय और व्यवहार के सही मूल्यांकन के लिये हम एक दूसरी दृष्टि से भी विचार कर सकते हैं । आचार दर्शन में निश्चय दृष्टि या परमार्थ दृष्टि नैतिक समाचरण का मूल्यांकन उसके आन्तर पक्ष, प्रयोजन या उसकी लक्ष्योन्मुखता के आधार पर करती है । दूसरे शब्दों में कहें तो यह एक वैयक्तिक दृष्टि से ही जो व्यक्ति के समाचरण का मूल्यांकन उसके लक्ष्य की दृष्टि से करती है। जैनदर्शन के अनुसार नैश्चयिक नैतिकता समाचरण के संकल्पात्मक पक्ष का अध्ययन करती है, लेकिन नैतिकता मात्र संकल्प ही नहीं है । नैतिक जीवन के लिए संकल्प अत्यन्त आवश्यक, अनिवार्य तत्व है लेकिन मात्र ऐसा संकल्प जिसमें समाचरण (Performance) का प्रयास न हो, सच्चा संकल्प नहीं होता । इसलिए नैतिक जीवन के लिए संकल्प नहीं होता। इसलिए नैतिक जीवन के लिए संकल्प को मात्र संकल्प नहीं रहना चाहिए वरन् कार्य रूप में परिणत भी होना चाहिए यही संकल्प की कार्य रूप में परिणति नैतिकता का दूसरा पक्ष - प्रस्तुत करती है। मात्र संकल्प तो व्यक्ति तक सीमित हो सकता है, उसका समाज पर कोई प्रभाव नहीं होता, वह समाज निरपेक्ष हो सकता है, लेकिन संकल्प को जब कार्य रूप में परिणत किया जता है, तो वह मात्र वैयक्तिक नहीं रहता है वरन् सामाजिक बन जाता है। अतः नैतिकता का विचार केवल नैश्चयिक या पारमार्थिक दृष्टि पर ही नहीं किया जा सकता है । ऐसा नैतिक मूल्यांकन मात्र आंशिक होगा, अपूर्ण होगा । अतः नैतिकता के समुचित मूल्यांकन के लिए नैतिकता में बाह्य या सामाजिक पक्ष पर भी विचार करना होगा, लेकिन यह सीमा क्षेत्र आचारलक्षी निश्चय नय का नहीं वरन् व्यवहार नय का है।
आचार के क्षेत्र में व्यवहार नय का अर्थ
नैतिकता के क्षेत्र में व्यवहार दृष्टि वह है जो समाचरण के बाह्य पक्ष पर बल देती हैं उसमें एकरूपता नहीं विविधता होती । डॉ. सुखलाल जी संघवी के शब्दों में व्यवहारिक आचार ऐसा एक रूप नहीं नैश्चयिक आचार की भूमिका से निष्पन्न ऐसे भिन्न-भिन्न देश-काल-जाति-स्वभाव - रुचि आदि के अनुसार कभी-कभीपरस्पर दिखाई देने वाले आचार व्यवहारिक आचार की कोटि में गिने जाते हैं। "21 जैन ज्ञानदर्शन
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