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संग्रहनय हमें यही संकेत करता है कि समष्टिगत कथनों के तात्पर्य को समष्टि के सन्दर्भ में ही समझने का ही प्रयत्न करना चाहिए और उसके आधार पर उस समष्टि के प्रत्येक सदस्य के बारे में कोई निष्कर्ष नहीं निकालना चाहिए ।
व्यवहारनय
व्यवहारनय सामान्य गर्भित विशेष पर बल देता है । व्यवहारनय को हम उपयोगितावादी दृष्टि भी कह सकते हैं। वैसे, जैन आचार्यो ने इसे व्यक्ति प्रधान दृष्टिकोण भी कहा है। अर्थ प्रक्रिया के सम्बन्ध में यह नय हमें यह बताता है कि कुछ व्यक्तियों के सन्दर्भ में निकाले गए निष्कर्षो एवं कथनों को समष्टि के अर्थ में सत्य नहीं माना जाना चाहिए । साथ ही व्यवहार नय कथन के शब्दार्थ पर न जाकर वक्ता की भावना या लोकपरम्परा (अभिसमय) को प्रमुखता देता है । व्यवहार भाषा के अनेक उदाहरण हैं । जब हम कहते हैं कि घी के घड़े में लड्डू रखे हैं यहाँ घी के घड़े का अर्थ ठीक वैसा नहीं है जैसा कि मिट्टी के घड़े का अर्थ है । यहाँ घी के घड़े का तात्पर्य वह घड़ा है जिसमें पहले घी रखा जाता था ।
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ऋजुसूत्रनय
ऋजुसूत्रनय को मुख्यतः पर्यायार्थिक दृष्टिकोण का प्रतिपादक कहा जाता है और उसे बौद्ध दर्शन का समर्थक बताया जाता है । ऋजुसूत्रनय वर्तमान स्थितियों को दृष्टि में रख कर कोई प्रकथन करता है । उदाहरण के लिए 'भारतीय व्यापारी प्रामाणिक नहीं है' यह कथन केवल वर्तमान सन्दर्भ में ही सत्य हो सकता है । इस कथन के आधार पर हम भूतकालीन और भविष्यकालीन भारतीय व्यापारियों के चरित्र का निर्धारण नहीं कर सकते । ऋजुसूत्रनय हमें यह बताता है कि उसके आधार पर कथित कोई भी वाक्य अपने तात्कालिक सन्दर्भ में ही सत्य होता है, अन्य कालिक सन्दर्भों में नहीं । जो वाक्य जिस कालिक सन्दर्भ में कहा गया है उसके वाक्यार्थ का निश्चय उसी कालिक सन्दर्भ में होना चाहिए ।
शब्दनय
नय सिद्धान्त के उपर्युक्त चार नय मुख्यतः शब्द के वाच्य विषय (अर्थ) से सम्बन्धित है, जबकि शेष तीन नयों का सम्बन्ध शब्द के वाच्यार्थ (Meaning) से है । शब्दन यह बताता है शब्दों का वाच्यार्थ उसकी क्रिया या विभक्ति के आधार पर भिन्न-भिन्न हो सकता है । उदाहरण के लिए 'बनारस भारत का प्रसिद्ध नगर था' और 'बनारस भारत का प्रसिद्ध नगर है' इन दोनों वाक्यों में बनारस शब्द का वाच्यार्थ भिन्न-भिन्न. है । एक भूतकालिन बनारस की बात कहता है, तो दूसरा वर्तमानकालीन। इसी प्रकार 'कृष्ण ने मारा' इसमें कृष्ण का वाच्यार्थ कृष्ण नामक वह व्यक्ति है जिसने किसी को मारने की क्रिया सम्पन्न की है। जबकि 'कृष्ण को
जैन दर्शन में तत्त्व और ज्ञान
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