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अनेक आगम-वचन या सूत्र ऐसे हैं, जो कल तक अवैज्ञानिक प्रतीत होते थे, वे आज वैज्ञानिक प्रतीत हो रहे हैं। मात्र इतना ही नहीं, इन सूत्रों की जो वैज्ञानिक व्याख्या की गयी, वह अधिक समीचीन प्रतीत होती है उदाहरण के रूप में परमाणुओं के पारस्परिक-बन्धन से स्कन्ध के निर्माण की प्रक्रिया को समझाने हेतु तत्त्वार्थसूत्र के पाँचवे अध्याय का एक सूत्र आता है- स्निग्धरूक्षत्वाद् बन्धः। इसमें स्निग्ध और रूक्ष परमाणुओं के एक-दूसरे से जुड़कर स्कन्ध बनाने की बात कही गयी है। सामान्य रूप से इसकी व्याख्या यह कहकर ही की जाती थी कि स्निग्ध (चिकने) एवं रूक्ष (खुरदुरे) परमाणु में बन्ध होता है, किन्तु आज जब हम इस सूत्र की वैज्ञानिक व्याख्या करते हैं कि स्निग्ध अर्थात् धनात्मक विद्युत् से आवेशित एवं रूक्ष अर्थात् ऋणात्मक विद्युत से आवेशित सूक्ष्म-कण-जैन-दर्शन की भाषा में परमाणु परस्पर मिलकर स्कन्ध का निर्माण करते हैं, तो तत्त्वार्थसूत्र का यह सूत्र अधिक विज्ञानसम्मत प्रतीत होता है। इसी प्रकार, आचारांगसूत्र में वानस्पतिक जीवन की प्राणीय-जीवन से जो तुलना की गई हैं, वह आज अधिक विज्ञानसम्मत सिद्ध हो रही है। आचारांग का यह कथन है कि वानस्पतिक-जगत् में उसी प्रकार की संवेदनशीलता है, जैसी प्राणी-जगत् में-इस तथ्य को सामान्यतया पाश्चात्य वैज्ञानिकों की आधुनिक खोजों के पूर्व सत्य नहीं माना जाता था, किन्तु सर जगदीशचन्द बसु और अन्य जैव-वैज्ञानिकों ने अब इस तथ्य की पुष्टि कर दी है कि वनस्पति में प्राणी जगत् की तरह ही संवेदनशीलता है, अतः आज आचारांग का कथन विज्ञानसम्मत सिद्ध होता है।
___ हमें यह बात ध्यान मे रखना है कि न तो विज्ञान धर्म का शत्रु है और न धार्मिक आस्थाओं को खण्डित करना ही उसका उद्देश्य है, यह जिसे खण्डित करता है, वे हमारे तथाकथित धार्मिक अन्धविश्वास होते हैं, साथ ही हमें यह भी समझना चाहिये कि वैज्ञानिक खोजों के परिणामस्वरूप अनेक धार्मिक अवधारणाएं पुष्ट ही हुई हैं। अनेक धार्मिक आचार-नियम, जो केवल हमारी शास्त्र के प्रति श्रद्धा के बल पर टिके थे, अब उनकी वैज्ञानिक उपयोगिता सिद्ध हो रही हैं।
जैन-परम्परा में रात्रि-भोजन का निषेध एक सामान्य नियम है, चाहे परम्परागत रूप में रात्रि-भोजन के साथ हिंसा की बात जुड़ी हो, किन्तु आज रात्रि भोजन का निषेध मात्र हिंसा-अहिंसा के आधार पर स्थित न होकर जीव-विज्ञान, चिकित्साशास्त्र और आहारशास्त्र की दृष्टि से अधिक विज्ञानसम्मत सिद्ध हो रहा है। सूर्य के प्रकाश में, भोजन के विषाणुओं को नष्ट करने की तथा शरीर में भोजन को पचाने की जो सामर्थ्य होती है, वह रात्रि के अन्धकार में नहीं होती- यह बात विज्ञानसम्मत सिद्ध हो चुकी है। इसी प्रकार, सूर्यास्त के बाद भोजन चिकित्साशास्त्र
जैन दर्शन में तत्त्व और ज्ञान
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