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________________ 88 आचार्य ज्ञानसागर के वाड्मय में नय-निरूपण 7. जब यह आत्मा निश्चय नय पर पहुँचता है तो वहाँ शुक्लध्यान को प्राप्त करता है। (विवेकोदय, पृ. 47) 8. कर्तव्यपरायणता का नाम ही व्यवहार नय है। (विवेकोदय, पृ. 48) निश्चय और व्यवहाररूप जो नय है उनमें अपने-अपने विषय के भेद से परस्पर विरोध प्रतीत होता है । इसी विरोध को जो अपने स्याद् पद के प्रभाव से बिल्कुल मिटा देनेवाला है ऐसे जिनशासन में जो लोग रमण करते हैं वे लोग सहज से ही मिथ्यात्व का वमन कर निर्मोह होते हुए शीघ्र ही समयसार को अर्थात् शुद्धात्मा को प्राप्त कर लेते हैं । (विवेकोदय, पृ. 258) 10. मतलब व्यवहार-मोक्षमार्ग की सम्पत्ति नियम से निश्चय-मोक्षमार्ग की साधक है । (विवेकोदय, पृ. 85) 11. निश्चय तो तीर्थफल है, रूप है और व्यवहार तीर्थ अर्थात् इसकी प्राप्ति का उपाय। (विवेकोदय, पृ. 86) 12. जैसे कि मैल का संयोग पाकर कपड़े की सफेदी नष्ट हो जाती है और वह मैला बन जाया करता है वैसे ही मिथ्यात्व, अज्ञान और कषायों के द्वारा इस आत्मा के सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सच्चरित्र ये तीनों नष्ट हो रहे हैं न कि चादर से ढके हुए घटादि की भाँति छुपे हुए हैं । इसीलिए यह जीवात्मा मोही यानी पागल बना हुआ है। (विवेकोदय, पृ. 89) 13. इस समयसारजी की दृष्टि में तो चतुर्थ गुणस्थानी जीव सम्यग्दृष्टि नहीं होता । ___ (विवेकोदय, पृ. 105) 14. हाँ, यह बात अवश्य कि उस लाण (भूसा) के हुए बिना धान्य नहीं हो सकता। उसी प्रकार बिना त्याग तपश्चरण के परम समाधि परिणाम नहीं हो सकता जिससे कि मुक्ति हो जाये किन्तु तपश्चरण मात्र से तो स्वर्ग सम्पत्ति की प्राप्ति होगी मुक्ति नहीं। ___(विवेकोदय, पृ. 106) 15. एक बाह्य-दृष्टि होती है और दूसरी अन्तरङ्ग-दृष्टि । बाह्य-दृष्टि का निमित्त पर लक्ष्य होता है और अन्तरङ्ग-दृष्टि उस पदार्थ के खुद के परिणमन पर निगाह करती है; इन्हीं को व्यवहार और निश्चय नय कहते हैं । (विवेकोदय, पृ. 120) 16. स्याद्वाद सिद्धान्त को माने बिना काम नहीं चलता । (विवेकोदय, पृ. 140) 17. पदार्थ का परिणमन भी कथञ्चित् स्वतन्त्र और कथञ्चित् परतन्त्र भी माना गया है। (विवेकोदय, पृ. 141) 18 निमित्त कोई चीज नहीं या वह बिल्कुल कुछ भी करता ही नहीं सो बात नहीं है। (विवेकोदय, पृ. 145)
SR No.006273
Book TitleNay Nirupan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivcharanlal Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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