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आचार्य ज्ञानसागर के वाड्मय में नय-निरूपण अन्त में समग्र रूप में प. पू. आचार्य ज्ञानसागरजी, प. पू. आ. विद्यासागरजी एवं पुनः प. पू. मुनिराज सुधासागरजी महाराज के चरणों में विनयाञ्जली !
पुनश्च, आचार्य ज्ञानसागरजी महाराज का वाङ्मय गम्भीर समुद्र के सदृश ही है मैं अल्प क्षयोपशम का धारक हूँ, अभ्यास भी विशेष नहीं है, उपयोग की चंचलता भी है अतः प्रमाद एवं अज्ञान वश त्रुटियाँ अवश्यमेव संभव है, एतदर्थ क्षमा चाहता हूँ । विद्वद्वर्ग से प्रार्थना है कि अपेक्षित सुधार करने की कृपा करें । मुझे भी अवगत करायें ताकि मैं भी संशोधन कर सकूँ ।
आगम सेवक - शिवचरन लाल जैन
भनपुरी दि. 9-9-96 सोमवार
॥ इति शुभम् ॥