SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एक बड़ी विशेषता थी। इस कृति में वह अध्ययन नवनीत की तरह नितरता हुआ दिखाई देगा। नव पदार्थों के सम्बन्ध में नाना प्रकार की विचित्र मान्यताएँ जैनों में धर कर गई थीं। स्वामीजी ने नव पदार्थ सम्बन्धी आगमिक विचार-धाराओं को उपस्थित करते हुए उनके विशुद्ध स्वरूप का विवेचन इस कृति में किया है। वह अपने-आप में अनन्य हैं इस कृति में कुल बारह ढालें हैं। प्रत्येक का रचना-समय तथा दोहों और गाथाओं की संख्या इस प्रकार है : पदार्थ नाम ढाल-संख्या दोहा गाथा - रचना-काल १. जीव १ ५ ६२ __ अजीव १ १ . ३ पुण्य पुण्य २ ५ 9 . ४. पाप पाप १ ५ ५ आस्रव २. श्री दुवारा, १५ चैत्र वदी १३ श्री दुवारा, १८५५ वैशाख बदी ५ बुधवार श्री दुवारा १८५५ जेठ बदी ६ सोमवार कोठास्या १८४३ कार्तिक सदी ४ गुरुवार श्री दुवारा १८५५ जेठ सुदी ३. गुरुवार पाली १८५५ आश्विन सुदी १२. आश्विन सुदी १४ नाथ दुवारा १८५६ फाल्गुन बदी १३ शुक्रवार नाथ दुवारा १८५६ फाल्गुन शुक्ला १० गुरुवार नाथ दुवारा १८५६ चैत्र बदी २ गुरुवार नाथ दुवारा १८२६ चैत्र बदी १२ शनिवार नाथ दुवारा १८५६ संवर . निर्जरा . ८. बंध १ . ६ मोक्ष मोक्ष जीव-अजीव १ १३ ५ ५६ २० ५६६ ५६६
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy