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________________ उपर्युक्त तालिका को देखने से स्पष्ट है कि पुण्य की दूसरी ढाल जो सं० १८४३ में विरचित है, वह संलग्न कृति के साथ बाद में जोड़ी गयी है। यही बात बारहवीं ढाल 'जीव-अजीव' के विषय में भी कही जा सकती है। यह संयोजन कार्य स्वामीजी के समय में ही हो गया मालूम देता है। एक-एक पदार्थ के विवेचन में स्वामीजी ने कितने प्रश्न व मुद्दों को स्पर्श किया है, यह आरभ की विस्तृत विषय-सूची में जाना जा सकेगा। टिप्पणियों की कुल संख्या २४४ है। उनकी भी विषय-सूचि एक-एक ढाल के वस्तु-विषय के साथ दे दी गई है। - टिप्पणियाँ प्रस्तुत करते समय जिन-जिन पुस्तकों का अवलोकन किया गया अथवा जिनसे उद्धरण आदि लिये गये हैं उनकी तालिका भी परिशिष्ट में दे दी गयी है। उन पुस्तकों के लेखक, अनुवादक और प्रकाशक-इन सबके प्रति मैं कृतज्ञता प्रकट करता ___ इस पुस्तक का सम्पादन मेरे लिए एक पहाड़ की चढ़ाई से कम नहीं रहा। फिर भी किसी के अनुग्रह ने मुझे निभा लिया। स्वामीजी की अनन्यतम श्रेष्ठ और आचार्य श्री की अत्यन्त प्रिय यह कृति आचार्य श्री के धवल-समारोह के अवसर पर जनता तक पहुँचा सका, इसीमें मेरे आनन्द का अतिरेक है। दूर बैठे मुझ जैसे क्षुद्र की यह अनुवाद-कृति इस महान् युग-पुरुष के प्रति . मेरी अनन्यतम श्रद्धा का एक प्रतीक मात्र है। श्रीचन्द रामपुरिया कलकत्ता भाद्र शुक्ला १, २०१८
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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