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________________ अजीव पदार्थ .१३. १४. १५. १६. १७. १६. जीव अजीव सर्व द्रव्यों का भाजन आकाशास्तिकाय है । अनन्त पदार्थों का भाजन होने से इसकी अनन्त पर्यायें कही गई हैं। धर्मास्तिकाय चलने में सहायक है, अधर्मास्तिकाय स्थिर रहने में तथा आकाशास्तिकाय का स्वभाव (गुण) द्रव्यों को स्थान देना है - सर्वद्रव्य उसी में रहते हैं । २०. धर्मास्तिकाय के तीन भेद हैं- (१) स्कन्ध, (२) स्कन्ध देश और (३) स्कन्ध-प्रदेश | जरा भी अन्यून - समूची धर्मास्तिकाय को स्कन्ध कहते हैं । एक प्रदेश से आदि कर (लगा कर ) एक प्रदेश कम तक स्कन्ध नहीं, पर देश और प्रदेश में होते हैं। प्रदेश मात्र भी न्यून को कोई स्कन्ध न समझे । १८. पुद्गलास्तिकाय से जो एक प्रदेश पुद्गल अलग हो जाता है उसको जिन भगवान ने परमाणु कहा है। उस सूक्ष्म परमाणु से धर्मास्तिकाय मापा गया है" । धर्मास्तिकाय धूप और छाँह की तरह संलग्न रूप से फैली हुई है। न तो उसके चातुर्दिक कोई घेरा है और न कोई संधि (जोड़) ही " | एक परमाण जितने धर्मास्तिकाय को स्पर्श करता है उतने को जिन भगवान ने प्रदेश कहा है। इस माप से धर्मास्तिकाय के असंख्यात प्रदेश होते हैं । इस माप से धर्मास्तिकाय असंख्यात प्रदेशी द्रव्य है । अधर्मास्तिकाय भी उतनी ही है। इसी माप से आकाशास्तिकाय के अनन्त प्रदेश होते हैं । आकाशास्तिकाय का लक्षण और पर्याय-संख्या तीनों के लक्षण धर्मास्तिकाय के स्कंध, देश, प्रदेश (गा० १५-१६) धर्मास्तिकाय कैसा द्रव्य है ? परमाणु की परिभाषा प्रदेश के माप का आधार परमाणु (गा० १६-२० ) ५३
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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