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________________ ७५४ नव पदार्थ तीसरा वर्णन इस प्रकार है : "भगवन् ! तथारूप श्रमण-ब्राह्मण की पर्युपासन का क्या फल है ?" "गौतम ! उसका फल श्रवण है।" "भगवन् ! श्रवण का क्या फल है ? "गौतम ! उसका फल ज्ञान है।" "भगवन् ! ज्ञान का क्या फल है ?" "गौतम ! ज्ञान का फल विज्ञान है।" "भगवन ! विज्ञान का क्या फल है ?" "गौतम ! विज्ञान का फल प्रत्याख्यान त्याग है।" "भगवन् ! प्रत्याख्यान का क्या फल है ?" "गौतम ! प्रत्याख्यान का फल संयम है।" "भगवन् ! संयम का क्या फल है ?" "गौतम ! संयम का फल अनास्रव है।" "भगवन् ! अनास्रव का क्या फल है ?" "गौतम ! अनास्रव का फल तप है।" "भगवन् ! तप का क्या फल है ?" "गौतम ! तप का फल व्यवदान-कर्मों का निर्जरण है।" "भगवन् ! व्यवदान का क्या फल है ?" "गौतम ! व्यवदान से अक्रिया होती है।" "भगवन् ! अक्रिया से क्या होता है ?" "गौतम ! अक्रिया से निर्वाण होता है।" "भगवन् ! निर्वाण से क्या फल होता है ?" “गौतम! पर्यवसान फलरूप-अन्तिम प्रयोजनरूप सिद्ध-गति में गमन होता है।" (२) सर्व सिद्धों के सुख समान हैं : अनेक भेदों से अनन्त सिद्ध हुए हैं पर उन सब के सुख तुल्य हैं। सब सिद्धों के सुखों को अनन्त कहा है। उन सुखों में अन्तर नहीं होता। सिद्ध जीवों में परस्पर भेद नहीं होता। सिद्धों के पन्द्रह भेद उनके अन्तिम जन्म की अपेक्षा से हैं। संसारी जीवों की विभिन्नता कर्मों की विचित्रता से है। मुक्त जीवों के किसी प्रकार का कर्म बंध न रहने से उनमें विचित्रता भी नहीं। सब सिद्ध जीव एकान्त आत्मिक सुख में रम रहे हैं। १. ठाणाङ्ग० ३.३.१६०
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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