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________________ मोक्ष पदार्थ : टिप्पणी ४ ७४७ है। गोत्र कर्म के क्षय से अगुरुलघुपन-न छोटापन न बड़ापन प्रकट होता है। और अन्तराय कर्म के क्षय से लब्धि प्रकट होती है। केवल ज्ञान, केवल दर्शन, आत्मिक सुख, क्षायक सम्यक्त्व, अटल अवगाहन, अमूर्तिपन, अगुरुलघुपन और लब्धि-ये आठ सब आत्माओं के स्वाभाविक गुण हैं । कर्म उन गुणों को दबाते रहते हैं, उन्हें प्रकट नहीं होने देते। कर्म-क्षय से ये सब गुण प्रकट हो जाते हैं। सब सिद्धों में ये गुण होते हैं। ४. सांसारिक सुख और मोक्ष सुखों की तुलना (गा० १-५, ११-१२) : पुण्य की प्रथम ढाल में पौद्गलिक सुख और मोक्ष-सुखों की तुलना आई है' और प्रसंगवश प्रायः उन्हीं शब्दों में यहाँ पुनरुक्त हुई है। पूर्व-स्थलों पर दोनों प्रकार के सुखों का पार्थक्य विस्त टिप्पणियें द्वारा दिखाया जा चुका है। मोक्ष सुख शाश्वत हैं, अनन्त हैं, निरपेक्ष हैं, स्वाभाविक हैं। सर्व काल के सर्व देवों के सुखों को मिला लिया जाय तो भी वे एक सिद्ध के सुख के अन्न्तवें भाग के भी तुल्य नहीं होते। सांसारिक सुख पौद्गलिक हैं। वे वास्तव में सुख नहीं पर कर्म-रूपी पाँव रोग से ग्रस्त होने के कारण खुजली की तरह मधुर लगते हैं। सांसारिक सुखों से आत्मा का कार्य सिद्ध नहीं होता। जो सांसारिक सुखें से प्रसन्न होता है, उसके अति मात्रा में पाप कर्मों का बन्ध होता है जिससे उसे नरक और निगोद के दुःखों को भोगना पड़ता है। श्री उमास्वाति ने लिखा है "मुक्तात्माओं के सुख विषयों से अतीत, अव्यय और अव्याबाध हैं । संसार के सुख विषयों की पूर्ति, वेदना के अभाव, पुण्य कर्मों के इष्ट फलरूप हैं जब कि मोक्ष के सुख कर्मक्लेश के क्षय से उत्पन्न परम सुखरूप। सारे लोक में ऐसा कोई पदार्थ नहीं जिसकी उपमा सिद्धों के सुख से दी जा सके। वे निरूपम हैं। वे प्रमाण, अनुमान और उपमान के विषय नहीं, इसलिए भी निरूपम हैं। वे अर्हत् भगवान के ही प्रत्यक्ष हैं और उन्हीं के द्वारा वाणी का विषय हो सकते हैं। अन्य विद्वान उन्हीं के कहे अनुसार उसका ग्रहण करते १. देखिए दो० २-४ तथा गा० ४६-५१ २. (क) देखिए पृ० १५१-२ टिप्पणी १ (३). १ (५) (ख) देखिए पृ० १७१-१७३ टि० १३
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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