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नव पदार्थ
सिद्ध जीव की अवगाहना उसके अन्तिम शरीर की अवगाहना से त्रिभाग हीन होती है अर्थात् मुक्त आत्मा के सघन प्रदेश अन्तिम शरीर से त्रिभाग कम क्षेत्र में व्याप्त होते
हैं।
आगम में सिद्धों के ३१ गुण बतलाये गए हैं। वे इस प्रकार हैं-आभिनिबोधिकज्ञानावरण का क्षय (२) श्रुतज्ञानावरण का क्षय (३) अवधिज्ञानावरण का क्षय (४) मनःपर्यायज्ञानावरण का क्षय (५) केवलज्ञानावरण का क्षय (६) चक्षुदर्शनावरण का क्षय (७) अचक्षुदर्शनावरण का क्षय (८) अवधिदर्शनावरण का क्षय (६) केवलदर्शनावरण का क्षय (१०) निद्रा का क्षय (११) निद्रानिद्रा का क्षय (१२) प्रचला का क्षय (१३) प्रचलाप्रचला का क्षय (१४) सत्यानर्द्धि का क्षय, (१५) सातावेदनीय का क्षय, (१६) असातावेदनीय का क्षय, (१७) दर्शनमोहनीय का क्षय, (१८) चारित्र मोहनीय का क्षय, (१६) नरकायु का क्षय, (२०) तिर्यगायु का क्षय, (२१) मनुष्यायु का क्षय, (२२) देवायु का क्षय, (२३) उच्च गोत्र का क्षय, (२४) नीच गोत्र का क्षय, (२५) शुभनाम का क्षय, (२६) अशुभनाम का क्षय, (२७) दानांतराय का क्षय, (२८) लाभांतराय का क्षय, (२६) भोगांतराय का क्षय, (३०) उपभोगांतराय का क्षय और (३१) वीर्यान्तराय कर्म का क्षय ।
संक्षेप में आठों मूल कर्म और उनकी सर्व उत्तर-प्रकृतियों का क्षय सिद्धों में पाया जाता है।
कर्मों के क्षय से सिद्धों में आठ विशेषताएँ प्रकट होती हैं। ज्ञानावरणीय कर्म के क्षय से केवलज्ञान उत्पन्न होता है । दर्शनावरणीय कर्म के क्षय से केवलदर्शन उत्पन्न होता है। वेदनीय कर्म के क्षय से आत्मिक सुख-अनन्त सुख प्रकट होता है। मोहनीय कर्म के क्षय से क्षायक सम्यक्त्व प्रकट होता है। आयुष्य कर्म के क्षय से अटल अवगाहना-शाश्वत स्थिरता प्रकट होती है। नाम कर्म के क्षय से अमूर्तिकपन प्रकट होता
१. उत्त० ३६.६४
उस्सेहो जस्स जो होइ, भवम्मि चरिमम्मि उ।
तिभागहीणो तत्तो य, सिद्धाणोगाहणा भवे।।। २. समवायाङ्ग सम० ३१। उत्तराध्ययन (३१.२०) में सिद्धों के ३१ गुणों का संकेत है।
देखिए उक्त स्थल की टीका : नव दरिसणम्मि चत्तारि आउए पंच आइमे अंते। सेसे दो दो भेया, खीणभिलावेण इगतीसं।।