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________________ ७१२ नव पदार्थ स्वामीजी ने प्रस्तुत ढाल में बन्ध-हेतु अथवा उनकी संख्या का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया है। उन्होंने कहा है-"बंध की उत्पत्ति आस्रवों से है। आस्रवों के निरोध से संवर होता है। फिर कर्मों का बन्ध नहीं होता।" इस तरह स्वामीजी ने प्रकारान्तर से बीस आस्रवों को ही बन्ध हेतु माना है। पाँच प्रधान आस्रव और योगास्रव के १५ भेदों का विवेचन पहले किया जा चुका _भिन्न-भिन्न कर्मों के बन्ध-हेतुओं का उल्लेख भी प्रसंग वश पहले भिन्न-भिन्न स्थलों पर आ चुका है। इन सब का समावेश पाँच बन्ध-हेतुओं में हो जाता है। नीचे भगवती सूत्र (७.१० तथा ८.६) पर आधारित भिन्न-भिन्न कर्मों के बन्ध-हेतुओं की एकत्रित संक्षिप्त तालिका उपस्थित की जाती है : कर्म बंध-हेतु १. ज्ञानावरणीय- (१) ज्ञानप्रत्यनीकता (२) ज्ञान-निन्हव (३) ज्ञानान्तराय (४) ज्ञान-प्रद्वेष (५) ज्ञानाशातना (६) ज्ञानविसंवादन-योग २. दर्शनावरणीय- (१) दर्शनप्रत्यनीकता (२) दर्शननिन्हव (३) दर्शनान्तराय (४) दर्शनप्रद्वेष (५) दर्शनाशातना (६) दर्शनविसंवादन-योग ३. वेदनीयसातवेदनीय- (१) अदुःख (२) अशोक (३) अझूरण (४) अटिप्पण (५) अपिट्टण (६) अपरितापन असातवेदनीय-(१) पर दुःख (२) पर शोक (३) पर झूरण (४) पर टिप्पण (५) पर पिट्टण (६) पर परितापन ४. मोहनीय- (१) तीव्र क्रोध (२) तीव्र मान (३) तीव्र माया (४) तीव्र लोभ (५) तीव्र दर्शन मोहनीय (६) तीव्र चारित्र मोहनीय ५. आयुष्य नारकीय- (१) महाआरम्भ (२) महापरिग्रह (३) मांसाहार (४) पंचेन्द्रियवध तिर्यञ्च- (१) माया (२) वञ्चना (३) असत्य वचन (४) कूट तौल, कूट माप मनुष्य- (१) प्रकृतिभद्रता (२) प्रकृतिविनीतता (३) सानुक्रोशता (४) अमत्सरता १. देखिए पृ० ३७३ और आगे
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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