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________________ बंध पदार्थ : टिप्पणी ५ दूसरा कथन है- 'योग प्रकृतिबंध और प्रदेशबन्ध का हेतु है और कषाय स्थिति बंध और अनुभागबन्ध का हेतु' ।" इससे योग और कषाय- ये दो बन्ध-हेतु ठहरते हैं । तीसरा कथन है- "मिथ्यात्व, अविरति, कषाय और योग- ये बन्ध-हेतु हैं ।" "इन चार बन्ध-हेतुओं ५७ भेद होते हैं।" उपर्युक्त बन्ध-हेतुओं में प्रमाद का उल्लेख नहीं है । आगम में उसे भी बंध हेतु कहा है (भग० १.२ ) । श्री उमास्वाति ने प्रमाद को भी बन्ध- हेतु माना है "मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमादकषाययोगा बन्धहेतवः ।" इस तरह बन्ध-हेतुओं की संख्या के सम्बन्ध में मतभेद है। कोई एक ही बन्ध-हेतु मानते हैं, कोई दो, कोई चार और कोई पाँच । जहाँ एक कषाय को ही बन्धहेतु कहा है, वहाँ उस कथन को बन्ध-हेतुओं में कषाय की प्रधानता का सूचक समझना चाहिए। अथवा बन्ध-हेतुओं का एकदेश कथनमात्र समझना चाहिए। इन भिन्न-भिन्न परम्पराओं का समन्वय इस प्रकार किया गया है - " प्रमाद एक प्रकार का असयम ही है और इसलिए यह अविरति या कषाय में आ जाता है; इसी दृष्टि से 'कर्मप्रकृति' आदि ग्रन्थों में केवल चार बन्धहेतु ही बताए गए हैं। बारीकी से देखने से मिथ्यात्व और असंयम- ये दोनों कषाय के स्वरूप से भिन्न नहीं पड़ते; इसलिए कषाय और योग--ये दो ही बन्ध-हेतु गिने गए हैं । " मिथ्यात्वादि पाँच हेतुओं का परस्पर पार्थक्य पहले बताया जा चुका है। ऐसी हालत में यह समन्वय बहुत दूर तक नहीं जाता । १. ७११ २. ठाणाङ्ग २.४६६ टीका : जोगा पयडिपदेस ठितिअणुभागं कषायओ कुणइ ठाणाङ्ग २.४.६६ टीका : मिथ्यात्वाविरतिकषाययोगा बन्धहेतवः ३. नवतत्त्वसाहित्यसंग्रह : देवगुप्तसूरिप्रणीत नवतत्त्वप्रकरण गा० १२ का भाष्य गा० १०० : मिच्छत्तमविराई तह. कषायजोगा य बंधहेउत्ति । एवं चउरो मूले, भेएण उ सत्तवण्णत्ति ।। ४. तत्त्वा० १ ५. तत्त्वार्थसूत्र (गुजराती तृ० आ०) पृ० ३२२-३२३
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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