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अजीव पदारथ
दुहा
१. हिवे अजीव नें ओलखायवा त्यांरा कहूं छू भाव थोड़ा सा परगट करूं, ते सुणजो आण
ढाल : २
( मम करो काया माया कारमी - ऐ देशी )
१. धर्म अधर्म आकास छै, अ पांचूई दरब अजीव छें,
भेद । उमेद ।।
काल नें पुदगल जांण जी । त्यांरी बुद्धवंत करो पिछांण जी । अ अजीव पदारथ ओलखो * ।।
२. यांमें च्यार दरबां ने अरूपी कह्या, त्यामें वर्ण गंध रस फरस नांहिं जी | एक पुद्गल द्रव्य रूपी कह्यो, वर्णादिक सर्व तिण मांहिं जी ।।
३. अ पांचोइ द्रव्य भेला रहे, पिण भेल सभेल न होय जी । आप आप तो गुण ले रह्या, त्यांने भेला कर सके नहीं कोय जी ।।
४. धर्म द्रव्य धर्मास्तिकाय छै, आसती ते छती वस्त ताय जी । असंख्यात प्रदेस छै तेहनां काय कही छै इण न्याय जी ।।
५. अधर्म द्रव्य अधर्मास्तिकाय छै, आ पिण छती वसत ताय जी। असंख्यात प्रदेस छै तेहनां, तिणनें काय कही इण न्याय जी ।।
* यह आँकड़ी हैं। प्रत्येक गाथा के अन्त में इसकी पुनरावृत्ति होती है ।