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________________ बंध पदार्थ ७०१ कर्मों की स्थिति (गा० १३-१८) १३. ज्ञानावरणीय कर्म, दर्शनावरणीय कर्म, वेदनीय कर्म और आठवें अंतराय कर्म-इन सबकी स्थिति एक समान है। चित्त लगा कर सुनो। १४. इन चारों कर्मों की जघन्य स्थिति अंतर मुहूर्त प्रमाण और उत्कृष्ट स्थिति तीस कोटाकोटि सागर जितनी है। १५. दर्शनमोहनीय कर्म की कम-से-कम स्थिति अंतर मुहूर्त प्रमाण और अधिक-से-अधिक स्थिति सत्तर कोटाकोटि सागर जितनी है। १६. भगवान ने चारित्रमोहनीय कर्म की जघन्य स्थिति अंतर मुहूर्त की बतलाई है। उत्कृष्ट स्थिति चालीस कोटाकोटि सागर की होती है। १७. आयुष्य कर्म की जघन्य स्थिति अंतर मुहूर्त और उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरोपम की होती है। इसकी इससे अधिक स्थिति नहीं होती। १८. 'नाम और गौत्र-इनमें से प्रत्येक कर्म की जघन्य स्थिति आठ मुहूर्त की है और उत्कृष्ट बीस कोटाकोटि सागर जितनी । १६. प्रत्येक जीव के आठ कर्मों के अनन्त पुद्गल-प्रदेश लगे रहते हैं। अभव्य जीवों की संख्या के माप से भगवान ने इन पुद्गलों की संख्या अनन्त गुणा बतलाई है। अनुभाग बंध (गा० १६-२१) २०. ये कर्म जीव के अवश्य ही उदय में आवेंगे; भोगे बिना .. (बांधे हुए कर्मों से) छुटकारा नहीं हो सकता। कर्मों के उदय में आने से ही सुख-दुःख होता है। बिना उदय के सुख-दुःख नहीं होता।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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