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नव पदार्थ
.. १३. ग्यांनावरणी दरसणावरणी वेदनी, वले आठमों करम अंतरायो जी।
यांरी थित छे सगला री सारिषी, ते सुणजो चित्त ल्यायो जी।।
१४. थित छे यां च्यारूं करमा तणी, अंतरमुहरत परिमांणो जी।
उतकष्टी थित यां च्यारूं करमा तणी, तीस कोडाकोड सागर जांणो जी।।
१५. थित दरसण मोहणी करम नी, जगन तो अंतरमहरत परमाणो जी।
उतकष्टी थित छे एहनी, सितर कोडाकोड सागर जांणों जी।।
१६. जिगन थित चारित मोहणी करम नी, अंतरमुहरत कही जगदीसो जी।
उतकष्टी थित छे एहनी, सागर कोडाकोड चालीसो. जी।।
१७. थित कही छे आउखा करम नीं, जिगन अंतरमुहरत होयो जी।
उतकष्टी थित सागर तेंतीस नीं, आगे थित आउखा री न कोयो जी।।
१८. थित नांम ने गोत्र करम तणी, जगन तो आठ मुहरत सोयो जी।
उतकष्टी एकीका करम नीं, बसी कोडाकोड सागर होयो जी।।
१६. एक जीव रे आठ करमा तणा, पुदगल रा परदेस अनन्तो जी।
ते अभवी जीवां थी मापीयां, अनंत गुणां कह्या भगवंतो जी।।
२०. ते अवस उदे आसी जीव रे, भोगवीया विण नहीं छटायो जी।
उदे आयां विण सुख दुःख हुवे नहीं, उदे आयां सुख दुख थायो जी।।