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________________ ૪૦ नव पदार्थ मोक्ष-प्राप्ति न होती हो पर क्रियापरक होने से स्वल्प कर्मांश की निर्जरा उसके भी होती ३. संवर और निर्जरा का सम्बन्ध : वाचक उमास्वाति ने तत्त्वार्थसूत्र (६.२) में गुप्ति, समिति,धर्म, अनुप्रेक्षा, परीषहजय और चारित्र से संवर की सिद्धि बतलाई है--“स गुप्तिसमितिधर्मानुपेक्षापरीषहजय चारित्रैः।“ इसके बाद अन्य सूत्र दिया है-"तपसा निर्जरा च (६.३)“ इसका अर्थ उन्होंने स्वयं इस प्रकार दिया है-"तप बारह प्रकार का है। उससे संवर होता है और निर्जरा भी।" संवर के उपर्युक्त हेतुओं में उल्लिखित 'धर्म' के भेदों का वर्णन करते हुए तप को भी उसका एक भेद माना है। प्रश्न होता है कि धर्म में तप समाविष्ट है तब सूत्रकार ने "तपसा निर्जरा च" यह सूत्र अलग रूप से क्यों दिया ? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए आचार्य पूज्यपाद लिखते हैं-"तप संवर और निर्जरा दोनों का कारण है और संवर का प्रमुख कारण है, यह बतलाने के लिये अलग कथन किया है।" श्री अकलङ्कदेव कहते हैं-"तप का अलग कथन अनर्थक नहीं क्योंकि वह निर्जरा का कारण भी है। तथा सब संवर-हेतुओं में तप प्रधान है। यह दिखाने के लिये भी तप का अलग उल्लेख किया गया है। १. तत्त्वा० ६.३ भाष्य : __ तपो द्वादशविधं वक्ष्यते। तेन संवरो भवति निर्जरा च। २. तत्त्वा० ६.६ ३. तत्त्वा० ६.३ सर्वार्थसिद्धि : तपो धर्मेऽन्तर्भूतमपि पृथगुच्यते उभयसाधनत्वख्यापनार्थ संवरं प्रति प्राधान्यप्रतिपादनार्थ च। ४. तत्त्वा० ६.३ राजवार्तिक १ : धर्मे अन्तर्भावात् पृथग्रहणमनर्थकमिति चेतः नः निर्जराकारणत्वख्यापनार्थत्वात् ५. तत्त्वा० ६.३ राजवार्तिक २ : सर्वेषु संवरहेतुषु प्रधानं तप इत्यस्य प्रतिपत्त्यर्थ च पृथग्ग्रहणं क्रियते।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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