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________________ ६५० नव पदार्थ बैठे हुए पुरुष के नीचे से सिंहासन निकाल लेने पर जो आसन बनता है, उसे वीरासन कहते हैं। ५. नैषद्यिक : निषद्या आसन में स्थित होना। बैठने के प्रकार विशेषों को निषद्या कहते हैं। निषद्या पाँच प्रकार की कही गई है : (१) आसन पर केवल पैर हों और पुत लगा हुआ न हो-इस प्रकार पैरों के बल पर बैठने के आसन को उत्कटुक कहते हैं। इस आसन से बैठना-उत्कटुक निषद्या कहलाता है। (२) गाय दुहते समय जो आसन बनता है, उसे गोदोहिका आसन कहते हैं। उसमें बैठना गोदोहिका निषद्या कहा जाता है। दूसरी परिभाषा के अनुसार गाय की तरह बैठने रूप आसन गो निषद्या कहलाता है। (३) जमीन को पैर और पुत दोनों स्पर्श करें, ऐसे आसन को समपादपुत आसन कहते हैं। उसमें बैठना समपादपुत निषद्या कहलाता है। (४) पद्मासन को-पलत्थी मार कर बैठने को पर्यंक-आसन कहते हैं। इस आसन में बैठना पर्यंक निषद्या है। (५) जंघा पर एक पैर चढ़ाकर बैठना 'अर्द्धपर्यंक-आसन' कहलाता हैं। इस आसन मे बैठना अर्द्ध-पर्यंक निषद्या है। ६. दंडायतिक : दण्ड की तरह आयाम-देह प्रसारित कर-पैर लम्बे कर बैठना । ७. लगंडशायी' : टेढ़े-बाँके लकड़े की तरह भूमि के पीठ नहीं लगाकर सोना। ८. आतापक : सर्दी-गर्मी-शीत-आतप आदि सहनरूप आतापना तप। बृहद् कल्प में आतापना तप के बारे में निम्न वर्णन मिलता है : (१) आतापना तप के तीन भेद हैं-उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य । सोते हुए की उत्कृष्ट, बैठे हुए की मध्यम और खड़े हुए की जघन्य आतापना है आयावणा य तिविहा उक्कोसा मज्झिमा जहन्ना य। उक्कोसा उ निवन्ना निसन्न मज्झा ठिय जिहन्ना।। १. वीरासनिक, दण्डायतिक और लगंडशायी के बृहत्कल्प में निम्न लक्षण दिए हैं वीरासणं तु सीहासणेव्व जहमुक्कज्जाणुगणिविट्ठो। डंडे लगंडउवमा आययकुज्जे य दोण्हंपि।।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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