SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 667
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६४२ नव पदार्थ (१३) उपनीतापनीत चर्या : उपनीत-अपनीत दोनों को ग्रहण करने का अभिग्रह कर भिक्षाटन करना । अथवा दाता द्वारा जिसका गुण कहा गया हो वह उपनीत, जिसका गुण नहीं कहा गया हो वह अपनीत। एक अपेक्षा से जिसका गुण कहा हो और दूसरी अपेक्षा से दोष-उस वस्तु को ग्रहण करने का अभिग्रह कर भिक्षाटन करना। उदाहरण स्वरूपयह जल शीतल है पर क्षारयुक्त है-दाता द्वारा इस तरह प्रशंसित वस्तु को ग्रहण करना। (१४) अपनीतोपनीत चर्या : जिस वस्तु में एक अपेक्षा से दोष और एक अपेक्षा से गुण बताया गया हो उसे ग्रहण करने का अभिग्रह कर भिक्षाटन करना । उदाहरण स्वरूप-यह जल क्षारयुक्त है पर शीतल है-दाता द्वारा इस तरह अप्रशंसित-प्रशंसित वस्तु को ग्रहण करना। (१५) संसृष्ट चर्या : भरे हुए हाथ या पात्रादि से देने पर लेने का नियम कर भिक्षाटन करना। (१६) असंसृष्ट चर्या : बिना भरे हुए हाथ या पात्रादि से देने पर लेने का नियम कर भिक्षाटन करना। (१७) तज्जातसंसृष्ट चर्या : जो देय वस्तु है उसी से संसृष्ट हाथ या पात्रादि से देने पर लेने का नियम कर भिक्षाटन करना। (१८) अज्ञात चर्या : स्वजाति या सम्बन्ध आदि को जताये बिना भिक्षाटन करना। (१६) मौन चर्या : मौन रह कर भिक्षाटन करना। (२०) दृष्टलाभ चर्या : दृष्ट आहार आदि की प्राप्ति के लिए भिक्षाटन करना अथवा पूर्व देखे हुए दाता से भिक्षा ग्रहण करना। (२१) अदृष्टलाभ चर्या : अदृष्ट आहार आदि की प्राप्ति के लिए भिक्षाटन करना अथवा पहले न देखे हुए दाता से भिक्षा ग्रहण करना। (२२) पृष्टलाभ चर्या : साधु ! आप को क्या दें ?-ऐसा प्रश्न कर कोई वस्तु दी जाए तो उसे लेना। (२३) अपृष्टलाभ चर्या : बिना कुछ पूछे कोई वस्तु दी जाए उसे लेना। (२४) भिक्षालाभ चर्या : तुच्छ या अज्ञात वस्तु को ग्रहण करना। (२५) अभिक्षालाभ चर्या : तुच्छ या अज्ञात वस्तु न लेने का अभिग्रह करना।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy