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निर्जरा पदार्थ (ढाल : २) : टिप्पणी ५
३. भाव अवमोदरिया :
यह तप अनेक प्रकार का कहा गया है, यथा- क्रोध को कम करना, (ख) अल्पमान - मान को कम करना, (ग) अल्प माया - माया को अल्प करना, (घ) अल्पलोभ - लोभ को कम करना (ङ) अल्पशब्द बोलने को घटाना और (च) अल्पझंझा-झंझा को कम करना । (छ) अल्प तूं तूं - तूं तूं, मैं-मैं को कम करना' ।
वाचक उमास्वाति ने अवमौदर्य के स्वरूप को बतलाते हुए लिखा है-" '‘अवम’ शब्द ऊन- न्यून का पर्याय वाचक है। इसका अर्थ कम या खाली होता है। कम पेट खाली रहना अवमौदर्य है। उत्कृष्ट और जघन्य को छोड़कर मध्यम कवल की अपेक्षा से यह तप तीन प्रकार का होता है- अल्पाहार अवमौदर्य, उपधि अवमौदर्य और प्रमाणप्राप्त से किंचित् ऊन अवमौदर्य । कवल का प्रमाण बत्तीस कवल से पहले का ग्रहण करना चाहिए ।"
वाचक उमास्वाति के अनुसार साधु को ज्यादा-से-ज्यादा बत्तीस कवल आहार लेना चाहिए। एक ग्रास और बत्तीस ग्रास को छोड़कर मध्य के दो से लेकर इकतीस ग्रास तक का आहार लेना अवमौदर्य तप है। दो, चार, छह आदि अल्प ग्रास लेने को अल्पाहार अवमौदर्य, आधे के करीब पंद्रह-सोलह ग्रास लेने को उपधि अवमौदर्य और इकतीस ग्रास के आहार तक को प्रमाणप्राप्त से किंचित् ऊन अवमौदर्य कहते हैं।
उमास्वाति ने एक ग्रास ग्रहण को अवमौदर्य क्यों नहीं माना - यह समझ में नहीं आता। पूर्ण आहार न करना जब अवमौदर्य है तब उसे भी ग्रहण करना चाहिए था। श्री अकलङ्कदेव ने उसे ग्रहण किया है - "आशितंभवो य ओदनः तस्य चतुर्भागेनार्द्धग्रासेन वा अवममूनं उदरमस्यासाववमोदरः, अवमोदरस्य भावः कर्म वा अवमोदर्यम्'।
१.
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(क) औपपातिक सम० २० : .
से किं तं भावोमोयरिया ? २ अणेगविहा पण्णत्ता । तं जहा - अप्पकोहे अप्पमाणे अप्माए अप्पलोहे अप्पसद्दे अप्पझंझे
(ख)
भगवती २५.७ :
भावोमोयरिया अणेगविहा पं० तं अप्पकोहे जाव अप्पलोभे, अप्पसद्दे, अप्पझंझे अप्पमं । सेत्तं भावोमोयरिया
२. तत्त्वा० ६.१६ भाष्य २
३.
तत्त्वा० ६.१६ राजवार्तिक ३