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________________ निर्जरा पदार्थ (ढाल : २) : टिप्पणी २ ६२३ "हे भगवन् ! जो वेदा गया क्या वह निर्जरा-प्राप्त है और जो निर्जरा-प्राप्त है वह वेदा गया ? "हे गौतम ! यह अर्थ योग्य नहीं। कारण कर्म वेदा गया होता है और नो-कर्म निर्जरा-प्राप्त। "हे भगवन् ! जिसको वेदन करता है क्या जीव उसकी निर्जरा करता है और जिसकी निर्जरा करता है उसका वेदन ?" "हे गौतम ! यह अर्थ योग्य नहीं। कारण जीव कर्म को वेदन करता है और नो-कर्म की निर्जरा।" "हे भगवन् ! जिसका वेदन करेगा क्या उसकी निर्जरा करेगा और जिसकी निर्जरा करेगा उसी का वेदन ? "हे गौतम ! यह अर्थ योग्य नहीं। कारण वह कर्म का वेदन करेगा और नो-कर्म की निर्जरा। "हे भगवन् ! जो वेदना का समय है क्या वही निर्जरा का समय है और जो निर्जरा का समय है वही वेदना का ?" “हे गौतम ! यह अर्थ योग्य नहीं। कारण जिस समय वेदन करता है उस समय निर्जरा नहीं करता और जिस समय निर्जरा करता है उस समय वेदन नहीं करता । अन्य समय वेदन करता है, अन्य समय निर्जरा करता है, वेदन का समय भिन्न है और निर्जरा का समय भिन्न है। उक्त प्रथम परिभाषा में कर्मों का स्वतः झड़ना और तप से झड़ना दोनों का समावेश होता है। २. “सा पुण देसेण कम्मखओ"-देशरूप कर्म-क्षय निर्जरा है। 'अनुभूतरसकर्म' अर्थात् 'अकर्म' को उपचार से कर्म मान कर ही यह परिभाषा की गई है अतः पहली और इस दूसरी परिभाषा में कोई अन्तर नहीं। ३. “महा ताप से तालाब का जल शोषण को प्राप्त होता है। वैसे ही जिससे पूर्वनिबद्ध कर्म निर्जरा को प्राप्त होते हैं, उसे निर्जरा कहते हैं। वह बारह प्रकार की है। “संसार के बीजभूतकर्म जिससे जीर्ण हों, उसे निर्जरा कहते हैं। १. नवतत्त्वसाहित्यसंग्रह : देवगुप्तसूरिप्रणीत नवतत्त्वप्रकरण गा० ११ का भाष्य ६५ २. (क) नवतत्त्वसाहित्य संग्रह : देवेन्दसूरिकृत नवतत्त्वप्रकरण गा० ७६ : पुव्वनिबद्धं कम्मं, महातवेणं सरंमि सलिलं व। निज्जिज्ज्ड जेण जिए, बारसहा निज्जरा सा उ।। ३. वही : हेमचन्द्रसूरिकृत सप्ततत्त्वप्रकरण गा० १२७ : कर्मणां भवहेतूनां, जरणादिह निर्जरा।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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