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नव पदार्थ
३८. वीयावच तप छे दस परकारे, ते वीयावच साधां री जांण जी।
करमां री कोड खपे , तिण थी, नेड़ी हुवें , निरवांण जी।।
३६. सझाय तप , पांच परकारे, जे भाव सहीत करें सोय जी।
अर्थ ने पाठ विवरा सुध गिणीया, करमां रा भड खय होय जी।।
४०. आरत रुदर ध्यान निवारे, ध्यावें धर्म में सुकल ध्यान जी।
ध्यावतो २ उतकष्टों ध्यावें, तो उपजें केवलग्यांन जी।।
४१. विउसग तप छे तजवा रो नाम, ते तो दरब नें भाव में दोय जी।
दरब विउसग च्यार परकारे, ते विवरो सुणो सहू कोय जी।।
४२. सरीर विउसग सरीर रो तजवो, इम गण नों विउसग जांण जी।
उपधि नों तजवो ते उपधि विउसग, भात पाणी रो इमहिज पिछांण जी।।
४३. भाव विउसग रा तीन भेद छ, कषाय संसार में करम जी।
कषाय विउसग च्यार परकारे, क्रोधादिक च्यांरू छोड्यां छै धर्म जी।।
४४. संसार विउसग संसार नों तजवो, तिणरा भेद , च्यार जी।
नरक तिर्यंच मिनष ने देवा, त्यांने तज ने त्यांतूं हुवें न्यार जी।।
४५. करम विउसग छे आठ परकारे, तजणां आढूइ करम जी।
त्यांने ज्यूं ज्यूं तजे ज्यूं हलको होवें, एहवी करणी थी निरजरा धर्म जी।।