SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 598
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निर्जरा पदार्थ (टाल : १) : टिप्पणी ३ ५७३ बंधे हुए कर्मों के उदय में आने पर जीवों में निम्न ३३ औदयिक भाव-अवस्थाएँ उत्पन्न होती हैं : गति- नरक, तिर्यञ्च, मनुष्य, देवगति। काय- पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, त्रसकाय। कषाय- क्रोध, मान, माया, लोभ । वेद- स्त्री, पुरुष, नपुंसक। लेश्या- कृष्ण, नील, कापोत, तेसस्, पद्म, शुक्ल । अन्यभाव- मिथ्यात्व, अविरति, असंज्ञीभाव, अज्ञानता, आहारता, छद्मस्थता, सयोगित्व, अकेवलीत्व, सांसारिकता, असिद्धत्व । उदयावस्था परिपाक अवस्था है। बंधे हुए कर्म सत्तारूप में पड़े रहते हैं। फल देने का समय आने पर वे उदय में आते हैं। उदय में आने पर जीव में जो भाव उत्पन्न होते हैं, वे औदयिक भाव हैं। उदय आठों कर्मों का होता है। कर्मोदय जीव में उज्ज्वलता उत्पन्न नहीं करता। आस्रव पदार्थ उदय और पारिणामिक भाव है। वह बंध-कारक है। वह संसार बढ़ाता है, उसे घटने नहीं देता। मोहनीयकर्म के क्षयोपशम से सम्यक् श्रद्धा और चारित्र का प्रादुर्भाव होता है। उपशम से औपशमिक सम्यक्त्व और औपशामिक चारित्र-ये दो भाव उत्पन्न होते हैं। क्षय से अटल सम्यक्त्व, और परम विशुद्ध यथाख्यात चारित्र उत्पन्न होते हैं। संवर औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिक भाव है। मोक्ष-प्राप्ति के दो चरण हैं(१) नये कर्मों का संचय न होने देना और (२) पुराने कर्मों को दूर करना। संवर प्रथम चरण है। वह नवीन मलीनता को उत्पन्न नहीं होने देता अतः आत्मशुद्धि का ही प्रबल उपक्रम है। निर्जरा द्वितीय चरण है। वह बंधे हुए कर्मों को दूर करती है। निर्जरा क्षायिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिक भाव है। आठ कर्मों में ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय-ये चार कर्म घनघाती हैं, यह पहले बताया जा चुका है (देखिए पृ० २६८-३०० टि० ३)। इन कर्मों
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy