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________________ ५६६ नव पदार्थ ६०. मोहणी करम खय हुवें सरवथा, बाकी रहें नहीं अंसमात हो। जब खायक समकत परगटें, वले खायक चारित जथाख्यात हो।। ६१. दरसण मोहणी खय हुवे सरवथा, जब निपजें खायक समकत परधान हो। चारित मोहणी खय हूआं, नीपजें खायक चारित निधान हो।। ६२. अंतराय करम अलगो हूआं, खायक वीर्य सगते हुवें ताय हो। खायक लब्द पांचूंइ परगटे, किण ही वात री नहीं अंतराय हो।। ६३. उपसम खायक षयउपसम भाव निरमला, ते निज गण जीवरा निरदोष हो। ते तो देस थकी जीव उजलो, सर्व उजलो ते मोख हो ।। ६४. देस विरत श्रावक तणी, सर्व विरत साध मी में खाय हो। ६४. देस विरत श्रावक तणी, सर्व विरत साधु री छे ताय हो। देस विरत समाइ सर्व विरत में, ज्यूं निरजरा समाइ मोख मांय हो।। ६५. देस थी जीव उजले ते निरजरा, सर्व उजलो ते जीव मोख हो। तिण सूं निरजरा ने मोख दोनूं जीव छे, उजल गुण जीवरा निरदोष हो।। ६६. जोड़ कीधी निरजरा ओलखायवा, नाथ दुवारा सहर मझार हो। संवत अठारे वरस छपनें, फागण सुद दसम गुरवार हो।।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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