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________________ ५६४ नव पदार्थ ५२. वीर्य तो निरंतर रहें, चवदमां गुण ठांणा लग जांण हो । बारमा तांइ तो षयउपसम भाव छें, खायक तेरमे चवदमे गुण ठांण हो । । ५३. लब्द वीर्य नें तो वीर्य कह्यों, करण वीर्य नें कह्यों जोग हो । ते पिण सगत वीर्य ज्यां लगे, त्यां लग रहें पुदगल संजोग हो । । ५४. पुदगल विण वीर्य सगत हुवें नहीं, पुदगल विनां नहीं जोग व्यापार हो । पुदगल लागा छें ज्यां लग जीव रे, जोग वीर्य छें संसार मझार हो । । ५५. वीर्य निज गुण छें जीव रो, अंतराय अलगा हूआं जांण हो ।. ते वीर्य निश्चेंइ भाव जीव छें, तिण में संका मूल म आण हो । । I ५६. एक मोह करम उपसम हुवें, जब नीपजें उपसम भाव दोय हो उपसम समकत उपसम चारित हुवें ते तो जीव उजलो हुवो सोय हो । । ५७. दरसण मोहणी करम उपसम हुवां, निपजें उपसम समकत निधांन हो। चारित मोहणी उपसम हूआ, परगटे उपसम चारित परधांन हो । । ५८. च्यार घणघातीया करम षय हुवें, जब परगट हुवें खायक भाव हो । गुण संरवथा उजला, त्यांरो जूओ २ सभाव हो ।। हो । ५६. ग्यांनावरणी सरवथा खय हुआं, उपजें केवल ग्यांन दरसणावर्णी पिण खय हुवें सरवथा, उपजें केवल दरसण परधांन हो । ।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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