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________________ ५५४ नव पदार्थ १२. मिथ्याती रे तो जगन दोय अग्यांन छे, उतकष्टा तीन अग्यांन हो। देस उणों दस पूर्व उतकष्टो भणे, इतरो उतकष्टो षयउपसम अग्यांन हो।। १३. समदिष्टी रे जगन दोय ग्यांन छे, उतकष्टा च्यार ग्यांन हो। उतकष्टो चवदें पूर्व भणे, एहवो षयउपसम भाव निधांन हो।। १४. मत ग्यांनावरणी षयउपसम हूआं, नीपजें मत ग्यांन मत अग्यांन हो। सुरत ग्यांनावरणी खयउपसम हूआं, नीपजें सुरत ग्यांन अग्यांन हो।। १५. वले भणवो आचारंग आदि दे, समदिष्टी रे चवदें पूर्व ग्यांन हो। मिथ्याती उतकष्टो भणे, देस उणो देस पूर्व लग जांण हो।। १६. अवधि ग्यांनावरणी षयउपसम हूआं, समदिष्टी पांमें अवध ग्यांन हो। मिथ्यादिष्टी नें विभंग नांण उपजें, षयउपसम परमाण जाण हो।। १७. मन पजवावर्णी षयउपसम्यां, उपजें मनपजव नांण हो। ते साधु समदिष्टी ने उपजें, एहवो षयउपसम भाव परधांन हो।। १८. ग्यांन अग्यांन सागार उपीयोग छे, दोयां रो एक सभाव हो। करम अलगा हूआं नीपजें, ए षयउपसम उजल भाव हो ।। १६. दरसणावर्णी खयउपसम हूआं, आठ बोल नीपजें श्रीकार हो। पांच इंद्री ने तीन दरसण हुवे, ते निरजरा उजला तंत सार हो।।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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