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________________ ५४६ नव पदार्थ आत्माएँ जीव हैं। द्रव्य-आत्मा मूल जीव है । अवशेष ७ आत्माएँ भाव-जीव हैं। द्रव्य-आत्मा की पर्याय है। उसके गुण हैं | उसके लक्षण हैं। इन आठ आत्माओं में चारित्र-आत्मा भी समाविष्ट है। अतः वह भी भाव-जीव है। चारित्र संवर ही है अतः संवर भाव-जीव है। ' आस्रव को अजीव और रूपी मानते हुए भी संवर को प्रायः जीव और अरूपी माना जाता रहा'। स्वामीजी के समय में संवर को अजीव माननेवाला कोई समुदाय था, ऐसा नहीं देखा जाता। श्री जयाचार्य ने ऐसे सम्प्रदाय का उल्लेख किया है और संवर किस प्रकार भाव जीव है, यह भी सिद्ध किया है। इस सम्बन्ध में उन्होंने निम्न प्रमाण उपस्थित किए हैं : १. उत्तराध्ययन में ज्ञान, दर्शन, तप, वीर्य और उपयोग के साथ चारित्र को भी जीव का लक्षण कहा है। चारित्र विरति संवर है। इस तरह संवर भी जीव का लक्षण सिद्ध होता है। जिस तरह ज्ञान, दर्शन, उपयोग-जीव के ये लक्षण भाव जीव हैं उसी प्रकार चारित्र-विरति संवर भी भाव-जीव है। २. अनुयोग द्वार में लिखा है-"गुणप्रमाण दो प्रकार का कहा गया है-(१) जीव गुणप्रमाण और (२) अजीव गुणप्रमाण । अजीव गुणप्रमाण पाँच प्रकार का है-(१) वर्ण गुणप्रमाण (२) गंध गुणप्रमाण (३) रस गुणप्रमाण (४) स्पर्श गुणप्रमाण और (५) संस्थान गुणप्रमाण । जीव गुणप्रमाण तीन प्रकार का है-(१) ज्ञान गुणप्रमाण, (२) दर्शन गुणप्रमाण और (३) चारित्र गुणप्रमाण ।" १. (क) नवतत्त्वसाहित्यसंग्रह : वृत्यादिसमेतं नवतत्त्वप्रकरणम् : जीवो संवर निज्जर मुक्खो चत्तारि हुंति अरूपी रूपी बंधासवपुन्नावा मिस्सो अजीवो य।। (१०५ । १३३) (ख) वही पृ० ८० यंत्र (ग) वही : हेमचन्द्रसूरिकृत सप्ततत्त्वप्रकरणम् (पृ० १८) २. भ्रमविध्वंसनम् : संवराऽधिकार पृ० ६२८ : केतला एक अज्ञानी संवर ने अजीव कहे छ। ३. उत्त० २८.११ (पृ० ५४२ पर उद्धृत) ४. अनुयोग द्वार : से किं तं जीवगुणप्पमाणे ? जीवगुणप्पमाणे तिविहे पुण्णत्ते, तं जहा णाणगुणप्पमाणे दंसणगुणप्पमाणे चरित्तगुणप्पमाणे
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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