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________________ संवर पदार्थ (ढाल : १) : टिप्पणी ५ आस्रव (जो प्रत्याख्यान से उत्पन्न होते हैं) भी कर्म के घटने से घटते हैं। कर्म घटे बिना ये भी घटाये नहीं जा सकते फिर प्रमाद आस्रव, कषाय आस्रव और योग आस्रव की तो बात ही क्या ?" इससे स्पष्ट है कि अप्रमाद संवर, अकषाय संवर और अयोग संवर की उत्पत्ति प्रत्याख्यान से नहीं होती; अपितु कर्मों के क्षय और क्षयोपशम से होती है। ५. अन्तिम पंद्रह संवर विरति संवर के भेद क्यों ? (गा० १०-१५) : टिप्पणी क्रमाङ्क तीन में बीस संवरों का विवेचन है। स्वामीजी यहाँ कहते हैं-“बीस संवरों में प्रथम पाँच-सम्यक्त्व संवर, विरति संवर अप्रमाद संवर, अकषाय संवर और योग संवर-ही प्रधान हैं। प्राणातिपात संवर से लेकर सूची-कुशाग्र संवर तक का समावेश विरति संवर में होता है। ये विरति संवर के भेद हैं। इन पंद्रह भेदों में प्रत्याख्यान-त्याग की. अपेक्षा रहती है। प्राणातिपात से लेकर सूची-कुशाग्र-सेवन तक पंद्रह आस्रव योगास्रव हैं। इन अशुभ योगास्रवों के प्रत्याख्यान से विरति संवर होता है । मन-वचन-काय के शुभ योग अवशेष रहते हैं। उनका सर्वथा निरोध होने पर अयोग संवर होता है। यहाँ प्रश्न उठता है-प्राणातिपात आदि पन्द्रह आस्रव योगास्रव के भेद हैं तो फिर प्राणातिपात विरमण आदि पंद्रह संवर अयोग संवर के भेद न होकर विरति संवर के भेद क्यों ? इसका उत्तर यह है-अविरति आस्रव के आधार प्राणातिपातादि अठारह पाप हैं। पंद्रह आस्रव इन्हीं पापों में समाविष्ट हैं। पापकारी प्रवृत्तियों का त्याग न होना ही अविरति आस्रव है। __उधर पंद्रह आस्रव प्रवृत्तिरूप हैं। मन-वचन-काय-योग की असत् प्रवृत्ति से ही प्राणातिपात आदि किये जाते हैं। प्रवृत्ति योग आस्रव का लक्षण है अतएव पंद्रह आस्रव योगास्रव में समाविष्ट हो जाते हैं। इन पंद्रह आस्रवों का प्रत्याख्यान करने से अत्याग-भावनारूप अविरति आस्रव का निरोध होता है, विरति संवर होता है, क्योंकि पापकारी वृत्तियाँ ही अविरति आस्रव हैं और उनका प्रत्याख्यान ही विरति संवर है। अब प्रश्न यह रहा कि इनके प्रत्याख्यान से अयोग संवर क्यों नहीं होता ? इसका उत्तर यह है कि यौगिक प्रवृत्ति दो प्रकार की है-शुभ और अशुभ । अयोग संवर इन दोनों - १. टीकम डोसी की चर्चा
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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