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________________ ५१६ नव पदार्थ (७) आदाननिक्षेपण समिति : आवश्यकतावश धर्मोपकरणों को उठाते या रखते समय उन्हें अच्छी तरह शोध कर उठाने-रखने को आदाननिक्षेपणसमिति कहते हैं। (८) उत्सर्ग समिति : त्रस-स्थावर जीव रहित प्रासुक स्थान पर, उसे अच्छी तरह देख और शोधकर मल-मूत्र का विसर्जन करना उत्सर्गसमिति है। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि मुनियों की निरवद्य प्रवृत्तियों के नियमों को ही 'समिति' नाम से विहित किया गया है। श्री अकलङ्कदेव लिखते हैं-“गुप्तियों के पालन में असमर्थ मुनि की कुशल में प्रवृत्ति को समिति कहते हैं । आगम में भी ऐसा ही कथन मिलता है। यहाँ प्रश्न उठता है-समितियाँ प्रवृत्तिरूप होने पर भी उन्हें संवर के भेदों में कैसे गिनाया गया। आचार्य पूज्यपाद कहते हैं-"विहित रूप से प्रवृत्ति करनेवाले के असंयमरूप परिणामों के निमित्त से जो कर्मों का आस्रव होता है उसका संवर होता है। श्री अकलङ्कदेव कहते हैं-"जाना, बोलना, खाना, रखना, उठना और मलोत्सर्ग आदि क्रियाओं में अप्रमत्त सावधानी से प्रवृत्ति करने पर इन निमित्तों से आनेवाले कर्मों का संवर हो जाता है। १. (क) तत्त्वा० ६.५ भाष्य (ख) वही : राजवार्तिक : ७ २. (क) तत्त्वा ६.५ भाष्य (ख) वही : राजवार्तिक : ८ ३. तत्त्वा० ६.४ सर्वार्थसिद्धि : . तत्रा शक्तस्य मुनेर्निरवद्य प्रव्रत्तिख्यापनार्थमाह ४. तत्त्वा० ६.५ राजवार्तिक ६ : तत्रासमर्थस्य कुशलेषु वृत्तिः समितिः. ५. उत्त० २४.२६ : एयाओ पंच समिईओ चरणस्स य पवत्तणे। ६. (क) तत्त्वा० ६.५ सर्वार्थसिद्धि तथा प्रवर्तमानस्यासंयमपरिणामनिमित्तकर्मास्रवात्संवरो भवति। ७. तत्त्वा० ६.५ राजवार्तिक : अतो गमनभाषणाभ्यवहरणग्रहणनिक्षेपोत्सर्गलक्षणसमितिविधावप्रमत्तानां तत्प्रणालिकाप्रसृतकर्माभावान्निभृतानां प्रासीदत् संवरः ।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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