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संवर पदार्थ (ढाल : १) : टिप्पणी २
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(३) चार संवर की दूसरी परम्परा : इसके अनुसार मिथ्यात्व, अज्ञान, अविरति और योग-आस्रवों के निरोध रूप चार संवर हैं।
(४) पाँच संवर की परम्परा : इस परम्परा के अनुसार संवर पाँच हैं। सम्यक्त्व संवर, (२) विरति संवर, (३) अप्रमाद संवर, (४) अकषाय संवर और (५) अयोग संवर।
(५) बीस संवर की परम्परा : इससे अनुसार बीस संवर ये हैं-(१) सम्यक्त्व संवर, (२) विरति संवर, (३) अप्रमाद संवर, (४) अकषाय संवर, (५) अयोग संवर, (६) प्राणातिपात-विरमण संवर, (७) मृषावाद-विरमण संवर, (८) अदत्तादान-विरमण संवर, (६) अब्रह्मचर्य-विरमण संवर, (१०) परिग्रह-विरमण संवर, (११) श्रोत्रेन्द्रिय संवर, (१२) चक्षुरिन्द्रिय संवर, (१३) घ्राणेन्द्रिय संवर, (१४) रसनेन्द्रिय संवर, (१५) स्पर्शनेन्द्रिय संवर, (१६) मन संवर, (१७) वचन संवर, (१८) काय संवर, (१६) भण्डोपरण संवर और (२०) सूची-कुशाग्र संवर।
१. समयसार संवर अधिकार १६०-१६१ :
मिच्छत्तं अण्णाणं अविरयभावो य जोगो य।।
हेउअभावे णियम्मा जायदि णाणिस्स आसवणिरोहो। २. (क) ठाणाङ्ग ५.२. ४१८
पंच संवरदारा पं० तं० सम्मत्तं विरती अपमादो अकसात्तितमजोगित्तं (ख) समावायाङ्ग ५
पंच संवरदारा पन्नता तं जहा-सम्मत्त विरई अप्पमत्तया अकसाया अजोगया ३. आगमों के आधार पर बीस की संख्या इस प्रकार बनती है
(क) देखिए-पा० टि० २ (ख) जंबू ! एत्तो संवरदाराइं पंच वोच्छामि आणुपुव्वीए।
जह भणियाणि भगवया सव्वदुहविमोक्खणट्ठाए।। पढम होइ अहिंसा वितियं सच्चवयणंति पन्नत्तं । दत्तमणुन्नाय संवरो य बंभचेरमपरिग्गहत्तं च।।
(प्रश्नव्याकरण : संवर द्वारा (ग) दसविधे संवरे पं० तं० सोतिंदियसंवरे जाव फासिंदितसंवरें मण० वय० काय०
उवकरणसंवरे सूचीकुसग्गसंवरे। (ठाणाङ्ग १०.१.७०६)