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________________ ४६८ नव पदार्थ ३३. जघन सामायक चारित तेहनां, अनंता गुण पजवा जांण हो। अनंता करम परदेस उदे था ते मिट गया, तिण सूअनंत गुण परगट्या आंण हो।। ३४. जघन समायक चारितीया तणा, अनंत गुण उजला परदेस हो। वले अनंता परदेस उदे थी मिट गया, जब अनंत गुण उजलो वशेष हो।। ३५. मोह करम घटे छ उदे थी इण विधे, ते तो घटे में असंखेज्ज वार हो। तिण सूं सामायक चारित नां कह्यां, असंख्यात थानक श्रीकार हो।। ३६. अनंत करम परदेस उदे थी मिट गया, चारित थानक नीपजें एक हो।। चारित गुण पजवा अनंता नीपजें, सामायक चारित रा भेद अनेक हो।। ३७. जगन सामायक चारित जेहना, पजवा अनंता जांण हो। तिण थी उतकष्टा सामायक चारित तणा, पजवा अनंत गुणां वखांण हो।। ३८. पजवा उतकष्टा सामायक चारित तणा, तेह थी सुषम संपराय नां वशेष हो। अनंत गुण कह्यां , जिगन चारित तणा, ए सुषम संपराय लो पेख हो।। ३६. छठा गुणठांणा थकी नवमां लगें, सामायक चारित जांण हो। तिणरा असंख्याता थानक पजवा अनंत छे, सुषम संपराय दसमों गुणठांण हो।। ४०. सुषम संपराय चारित तेहनां, थानक असंखेज जांण हो। एक २ थानक रा पजवा अनंत छ, तिणनें सामायक ज्यूं लीज्यो पिछांण हो।।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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