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________________ ४८६ नव पदार्थ और लोभक्षपण । अप्रशस्त तीन प्रकार का है - ज्ञानक्षपण, दर्शनक्षपण और चारित्रक्षपण' ।" इसका तात्पर्य है- प्रशस्त भाव से क्रोध, मान, माया और लोभ का क्षपण और अप्रशस्त भाव से ज्ञान, दर्शन और चारित्र का क्षपण होता है। ज्ञान, दर्शन और चारित्र जीव के निजी गुण हैं। वे जीव-भाव हैं। जिस तरह अशुभ भाव से ज्ञान, दर्शन और चारित्र का क्षपण होता है पर ज्ञानादिक अजीव नहीं उसी प्रकार भले भाव से अशुभ आस्रव का क्षपण होता है पर आस्रव अजीव नहीं होता । १. से किं तं भावज्झवणा ? भावज्झवणा दुविहा पण्णत्ता तं जहा आगमओ, नो-आगमओ । से किं तं आगमओ भावज्झवणा ? आगमओ भावज्झवणा जाणए उवओ से तं आगमो भावज्झवणा । से किं तं नो-आगमओ भावज्झवणा ? नो-आगमओ भावज्झवणा, दुविहा पण्णत्ता तं जहा पसत्था य अपसत्था य । से किं तं पसत्था ? पसत्था चउव्विहा पण्सत्ता, तं जहा- कोहज्झवणा माणज्झवणा, मायाज्झवणा, लोभज्झवणा से तं पसत्था से किं ते अपसत्था ? अपसत्था तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - णाणज्झवणा, दंसणज्झवणा, चरित्तज्झवणा, सेतं अपसत्था । से तं नो-आगमओ भावज्झवणा से तं भावज्झवणा से तं उह निष्फन्ने ।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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