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________________ ४८४ नव पदार्थ जिनसे वह असंयत, अविरत, अप्रत्याख्यानी आदि कहलाता है। जैसे क्रोधादि भाव कषाय आस्रव हैं वैसे ही असंयम, अविरति, अप्रत्याख्यान आदि भाव अविरति आस्रव हैं। अनुयोगद्वार में कहा है-भावलाभ दो प्रकार का है-(१) आगम भावलाभ और (२) नो-आगम भावलाभ । उपयोगपूर्वक सूत्र पढ़ना आगम भावलाभ है। नो-आगम भावलाभ दो प्रकार का है-प्रशस्त और अप्रशस्त । प्रशस्त भावलाभ तीन प्रकार का है-ज्ञानलाभ, दर्शनलाभ और चारित्रलाभ। अप्रशस्त लाभ चार प्रकार का है-क्रोधलाभ, मानलाभ, मायालाभ और लोभालाभ । मूल पाठ इस प्रकार है :__से किं तं भावाए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-आगमओय, नो आगमओय । से किं तं आगमतो भावाए ? आगमतो भावाए जाणए, ऊवऊत्ते, से तं आगमतो भावाए। से किं तं नो आगमतो भावाए ? नो आगमतो भावाए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा पसत्थे अप्पसत्थे। से किं तं पसत्थे ? पसत्थे तिविहे पण्णत्त तं जहा णाणाए, दंसणाए, चरित्ताए, से तं पसत्थे। से किं तं अप्पसत्थे ? अपसत्थे चउबिहे पण्णत्ते, तं जहा कोहाए, माणाए, मायाए, लोभाए से तं अप्पसत्थे। से तं नो आगमतो भावाए, से तं भावाए, से ते आए। यहाँ ज्ञान, दर्शन और चारित्र को प्रशस्त भाव में और क्रोध, मान, माया और लोभ को अप्रशस्त भाव में समाविष्ट किया है। इससे फलित है कि क्रोध आदि चारों भाव भाव-कषाय हैं । भाव-कषाय कषाय आस्रव है। अतः कषाय आस्रव जीव-परिणाम सिद्ध होता इसी तरह अविरति, असंयम आदि भी जीव के अप्रशस्त भाव हैं। जीव के ये भाव अविरति आस्रव हैं। इसी तरह अविरत आस्रव जीव-परिणाम है। २३. किस-किस तत्त्व की घट-बढ़ होती है (गा० ५६-५८) : आगम में कहा है : “जो आस्रव हैं-कर्म-प्रवेश के द्वार हैं वे ही अनुन्मुक्त अवस्था में परिस्रव हैं-कर्म-प्रदेश को रोकने के हेतु हैं। जो परिस्रव हैं-कर्म-प्रदेश को रोकने के उपाय हैं वे ही (उन्मुक्त अवस्था में) आस्रव हैं-कर्म-प्रवेश के द्वार हैं। जो अनास्रव हैं-कर्म-प्रवेश के कारण नहीं वे भी (अपनाये बिना) संवर-कर्म-प्रदेश के रोकने वाले नहीं होते। जो आस्रव कर्म-प्रवेश के कारण हैं-वे ही (रोकने पर) अनास्रव-संवर होते हैं।" १. आचाराङ्ग १। ४.२ जे आसवा ते परिस्सवा जे परिस्सवा ते आसवा जे अणासवा ते अपरिस्संवा जे अपरिस्सवा ते अणासवा
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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