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________________ आस्त्रव पदार्थ (ढाल : २) : टिप्पणी : १७ ४६६ क्षयोपशम, उपशम और क्षय से उत्पन्न जीवस्पन्दन भाव लेश्या है'।' दिगम्बर आचार्यों ने भी छ: लेश्याओं को उदयभाव कहा है। इस सम्बन्ध में सर्वार्थसिद्धि में निम्न समाधान मिलता है : "उपशान्तकषाय, क्षीणकषाय और सयोगीकेवली गुणस्थान में शुक्ललेश्या हैं। वहाँ पर कषाय का उदय नहीं फिर लेश्याएँ औदयिक कैसे ठहरती हैं ?" _ "जो योगप्रवृत्ति कषाय के उदय से अनुरंजित है वही लेश्या है। इस प्रकार पूर्वभावप्रज्ञापन नय की अपेक्षा से उपशान्तकषाय और गुणस्थानों में भी लेश्या को औदयिक कहा है। अयोगीकेवली के योगप्रवृत्ति नहीं होती इसलिए वे लेश्यारहित हैं ऐसा निश्चय होता है। ___ गोम्मटसार में भी कहा है-“अयोगिस्थानमलेश्यं तु" (जी० का० : ५३२)-अयोगी स्थान में लेश्या नहीं होती। जिन गुणस्थानों में कषाय नष्ट हो चुके हैं उनमें लेश्या होने का कथन भूतपूर्वगति न्याय से है। अथवा योगप्रवृति मुख्य होने से वहाँ लेश्या भी कही गयी है। अध्यवसाय के सम्बन्ध में निम्न बातें जानने जैसी हैं : श्रीकुन्दकुन्दाचार्य ने बुद्धि, व्यवसाय, अध्यवसाय, मति, विज्ञान, चित्त, भाव और परिणाम सबको एकार्थक कहा है। इनकी व्याख्या क्रमशः इस प्रकार है-बोधनं बुद्धिः, व्यवसानं व्यवसायः, अध्यवसानं अध्यवसायः, मननं पर्यालोचनं मतिश्च, विज्ञायते अनेनेति विज्ञानं, चिंतनं चित्तं, भवनं भावः, परिणमनं परिणामः | १. गोम्मटसार : जीवकाण्ड : ५३६ : वण्णोदयसंपादिदसरीरवण्णो दु दव्वदो लेस्सा। मोहुदयखओवसमोवसमखयजजीवफंदणंभावो ।। २. (क) तत्त्वा० २.६ (ख) गोम्मटसार : जीवकाण्ड : ५५५ ___ भावादो छल्लेस्सा ओदयिया होंति अप्पबहुगं तु। ३. तत्त्वा० २.६ सर्वार्थसिद्धि ४. गोम्मटसार : जीवकाण्ड : ५३३ णट्ठकसाये लेस्सा उच्चदि सा भूदपुल्वगदिणाया। अहवा जोगपउत्ती मुक्खोत्ति तहिं हवे लेस्सा।। समयसार : बंध अधिकार : २७१ बुद्धी ववसाओवि य अज्झवसाणं मई य विण्णाणं। एक्कट्ठमेव सव्वं चित्तं भावो य परिणामो।। ५. वही : २७१ की जयसेनवृत्ति ५.
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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