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________________ ४५८ नव पदार्थ की स्थिति का उल्लेख है। उनके स्वाभाव का उल्लेख है। इन निवर्तन योगों के स्वभाव, स्थिति आदि भी सूत्र से बताओ। “योंग के व्यापार से निवृत्त होने पर योग घटना चाहिए। जो प्रवृत्ति करे उसे योग कहते हैं। जो प्रवृत्ति नहीं करते उन्हें योग नहीं कहा जा सकता। "एक समय में एक मन योग होता है, एक वचन योग होता है और एक काय योग होता है। एक समय में पंद्रह योग नहीं होते। पंद्रह योगों की अलग-अलग स्थिति होती है। कौन-कौन-सा संवर शुभ योग हैं ?" (३) शुभ योग संवर और चारित्र है : स्वामीजी के सामने मतवाद आया-“जो शुभ योग हैं वे ही संवर हैं। जो शुभयोग हैं वे ही चारित्र हैं। जो शुभयोग हैं वे ही सामायिक चारित्र हैं। यावत् जो शुभयोग हैं वे ही यथाख्यात चारित्र हैं। पाँचों ही चारित्र शुभयोग हैं।" उत्तर में स्वामीजी ने कहा है-“यह श्रद्धान भी जिन-मार्ग का नहीं। उससे विरुद्ध, विपरीत और दूर है। शुभयोग और संवर भिन्न-भिन्न हैं। शुभयोग निरवद्य व्यापार है। चारित्र शीतलीभूत स्थिर-प्रदेशी है। योग चल प्रदेशी है। चारित्र चारित्रावरणीय कर्म के उपशम, क्षय, क्षयोपशम से उत्पन्न होता है। उसके प्रदेश स्थिरभूत हैं। योग सावद्य-निरवद्य व्यापार है। प्रदेशों का चलाचल भाव है। सावद्य-योग सावध-व्यापार है। निरवद्य-योग निरवद्य-व्यापार है।" "अंतरायकर्म के क्षयोपशम से क्षायक वीर्य उत्पन्न होता है। अंतरायकर्म के क्षयोपशम से क्षयोपशम वीर्य उत्पन्न होता है। उस वीर्य के प्रदेश लब्धिवीर्य हैं। वे स्थिर प्रदेश हैं। महाशक्ति बल-पराक्रम वाले हैं। नामकर्म क संयोग सहित वीर्य वीर्यात्मा है। वह सकल बल, पराक्रम को फोडती है तब प्रदेशों में हलन-चलन होती है। प्रदेश आगे-पीछे चलते हैं। उसे योग.आत्मा कहा गया है। मोहकर्म के उदय से नामकर्म के संयोग से जो जीव के प्रदेश चलते हैं यह भी योग आत्मा है। _ "जो शुभ योग को संवर कहते हैं उनसे पूछना चाहिए-कौन-सा योग शुभ है ? योग पद्रंह हैं उनमें से कौन-सा शुभ योग संवर है ? अथवा योग तीन हैं-मन योग, वचन योग और काय योग। उनमें से कौन-सा योग संवर है- मन योग संवर है, वचन योग संवर है या काय योग संवर है ? "उनसे यह भी पूछना चाहिए-सामायिक चारित्र यावत् यथाख्यात चारित्र को कौन-सा शुभ योग कह्ना चाहिए ? "पंद्रह योगों में कौन-सा शुभ योग संवर है ?
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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