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नव पदार्थ
१८. दरब जोगां नें रूपी कह्या छे, ते तो भाव जोग रे छे लारो रे।
दरब जोगां सूं तो करम न लागे, भाव जोग छे आश्रव दुवारो रे।।
१६. आस्रव ने करम कहे , अग्यांनी, तिण लेखे पिण उंधी दरसी रे।
आठ करमां ने तो चोफरसी कहें छे, काया जोग तो छ अठफरसी रे।।
२०. आश्रव ने करम कहे त्यांरी सरधा, उठी जठा थी झूठी रे।
त्यांरा बोल्या री ठीक पिण त्याने नाही, त्यांरी हीया निलाड री फूटी रे।।
२१. वीस आश्रव में सोले एकंत सावद्य, ते पाप तणा , वारो रे।
ते जीव रा किरतब माठा ने खोटा, पाप तणा करतारो रे।।
२२. मन वचन काया र जोग व्यापार, वले समचे जोग व्यापारो रे।
ए च्यारुइ आश्रव सावद्य निरवद, पुन पाप तणा छे दुवारो रे।।
२३. मिथ्यात इविरत ने परमाद, कषाय ने जोग व्यापारो रे। __ए करम तणा करता जीव रे छे, ए पांचूंइ आश्रव दुवारो रे।।
२४. यांमें च्यार आश्रव सभावीक उदारा, जोग में पनरे आश्रव समाया रे।
जोग किरतब ने सभावीक पिण छे, तिण सूं जोग में पनरेइ आण रे।।
२५. हिंसा करें तो जोग आश्रव छे, झूठ बोलें ते जोग छे ताह्यो रे।
चोरी सूं लेइ सुचीकुसग सेवे ते, पनरेंइ आया जोग मांह्यो रे।।