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________________ आस्त्रव पदार्थ (टाल : २) ४३१ (२) अविरति आस्रव २. जिन सावध कार्मों का त्याग नहीं होता उनकी जीव के आशा-वांछा लगी रहती है। आशा-वांछा जीव के मलीन परिणाम हैं। यह अत्याग भाव ही अविरति आस्रव है। (३) प्रमाद आस्रव ३. जीव के प्रमादरूप मलीन (अशुभ) परिणाम प्रमाद-आस्रव हैं। इससे निरंतर पाप लगता रहता है। जीव के परिणामों को अजीव कहने वाला घोर मिथ्यात्वी है। उसको झूठी श्रद्धा की पकड़ है। ४. जिन भगवान ने कषाय आस्रव को जीव बतलाया है, सूत्रों में कषाय आत्मा कही है। कषाय करने का स्वभाव जीव का ही है। कषाय जीव-परिणाम है। (४) कषाय आस्रव (५) योग आस्रव ५. योग आस्रव को जिन भगवान ने जीव कहा है। भगवान ने योग आत्मा कही है। तीनों योगों के व्यापार जीव के हैं। योग जीव के परिणाम हैं। (६) प्राणातिपात आस्रव ६. जीव की हिंसा करना प्राणातिपात आस्रव है। हिंसा साक्षात् जीव ही करता है, हिंसा करना जीव-परिणाम है। इसमें तिलमात्र भी शंका नहीं। ७. झूठ बोलने को जिनेश्वर भगवान ने मृषावाद आस्रव कहा है। झूठ साक्षात् जीव ही बोलता है, झूठ बोलना जीव-परिणाम है। इसमें जरा भी शंका नहीं। (७) मृषावाद आस्रव (८) अदत्तादान आस्रव ८. इसी तरह जिन भगवान ने चोरी करने को अदत्तादान आस्रव कहा है। चोरी करने वाला साक्षात् जीव होता है। चोरी करना जीव-परिणाम है, इसमें जरा भी शंका नहीं। अब्रह्मचर्य सेवन करने को मैथुन आस्रव कहा है | मैथुन सेवन जीव ही करता है। मैथुन जीव-परिणाम है। मैथुन सेवन से अत्यन्त पाप लगता है। (६) अब्रह्मचर्य आस्रव
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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