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________________ ३६८ द्रव्यबन्ध है। कर्म का निर्मूलन करने में समर्थ शुद्ध आत्मलब्धिरूप जीव परिणाम भावमोक्ष है; भावमोक्ष के निमित्त से जीव और कर्म-प्रदेशों का निरवशेष पृथक्भाव द्रव्य मोक्ष है'।" उपर्युक्त प्रश्न का उत्तर देते हुए कई श्वेताम्बर आचार्यों ने कहा है : "संवर, निर्जरा और मोक्ष- ये जीव और अरूपी हैं तथा बंध, आश्रव, पुण्य, पाप, अजीव और रूपी हैं।" अभयदेव सूरि ने इस प्रश्न का उत्तर विस्तार से देते हुए लिखा है "पुण्य आदि पदार्थ जीव अजीव व्यतिरिक्त नहीं हैं। पुण्य पाप दोनों कर्म हैं । बन्ध पुण्य-पापात्मक है। कर्म पुद्गल का परिणाम है। पुद्गल अजीव है। आश्रव मिथ्यादर्शनादि रूप जीव के परिणाम हैं। आत्मा और पुद्गल के अमिलन का कारण संवर आश्रव-निरोध लक्षण वाला है । वह देश सर्व निवृत्ति रूप आत्म-परिणाम है। निर्जरा कर्म परिशाट रूप है । जीव स्वशक्ति से कर्मों को पृथक् करता है वह निर्जरा है। आत्मा का सर्व कर्मों से विरहित होना मोक्ष है । (अन्य पदार्थों का जीव अजीव पदार्थों में समावेश हो जाने से ही कहा है कि ) जीव अजीव सद्भाव पदार्थ हैं। इसीलिए कहा कि लोक में जो हैं वे सर्व दो प्रकार के हैं- या तो जीव अथवा अजीव । सामान्य रूप से जीव अजीव दो पदार्थ कहे हैं उन्हें ही विशेष रूप से नौ प्रकार से कहा है :" १. (क) पञ्चास्तिकाय २.१०८ अमृतचन्द्रीय टीका (ख) वही २.१०८ जयसेनाचार्यकृत टीका (ग) द्रव्यसंग्रह २.२६, ३२, ३४, ३६, ३८ २. नवतत्त्वसाहित्यसंग्रहः श्री नवतत्त्वप्रकरणम् १०५ ।१३३ जीवो संवर निज्जर मुक्खो चत्तारि हुति अरूवी । रूवी बंधासवपुन्नपावा मिस्सो अजीवो य ।। ठाणाङ्ग ६.३.६६५ टीका : नव पदार्थ ३. ननुजीवाजीवव्यतिरिक्ताः पुण्यादयो न सन्ति, तथाऽयुज्यमानत्वात् तथाहि - पुण्यपापे कर्म्मणी बन्धोऽपि तदात्मक एव कर्म्म च पुद्गलपरिणामः पुद्गलाश्चाजीवा इति आश्रवस्तु मिथ्यादर्शनादिरूपः परिणामो जीवस्य स चात्मानं पुद्गलांश्च विरहय्य कोऽन्यः ? संवरोऽप्याश्रवनिरोधलक्षणो देशसर्व्वभेद आत्मनः परिणामो निवृत्तिरूपो, निर्जरा तु कर्म्मपरिशाटो जीवः कर्म्मणां यत् पार्थक्यमापादयति स्वशत्तया, मोक्षोऽप्यात्मा समस्तकर्म्मविरहित इति तस्माज्जीवाजीवौ सद्भावपदार्थाविति वक्तव्यं, अत एवोक्तमिहैव "जदत्थिं च णं लोए तं सव्वं दुप्पडोयारं, तंजहा - जीवच्चेअ अजीवच्चेअ" अत्रोच्यते, सत्यमेतत्, किन्तु यावेव जीवाजीवपदार्थों सामान्येनोक्तौ तावेवेह विशेषतो नवधोक्तौ ।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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