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________________ नव पदार्थ । ३५४ २६. जीव नें पुदगल रो मेल, तीजा दरब तणो नहीं भेल । जीव लगावे जांण २, जब पुदगल लागे छे आंण।। २७. तेहिज पुदगल छे पुन पाप, त्यांरो करता , जीव आप। करता तेहिज आश्रव जांणों, तिण में संका मूल म आंणों ।। २८. जीव छे करमा रो करता, सूतर में पाठ अपड़ता। कह्यो पहला अंग मझारो, जीव करमां रो करतारो।। २६. ते पेंहलो इज उदेसों संभालो, ए तो करता कह्यो त्रिहूं कालो। जीव सरूप नों इधकार, तीन करणे कह्यों करतार ।। ३०. करता तेहिज आश्रव तांम, जीव रा भला मुंडा परिणाम । परिणाम ते आश्रव दुवार, ते जीव तणो व्यापार ।। ३१. करता करणी हेतू ने उपाय, ए करमां रा करता कहाय । यां सूं करम लागे , आय, त्यां ने आश्रव कह्या जिण राय । ३५. सावध करणी सू. पाप लागे, तिण सूं दुःख भोगवसी आगे। - सावध करणी नें कहें अजीव, ते तो निश्चें मिथ्याती जीव ।। ३३. जोग सावध निरवद चाल्या, त्यांने जीव दरब में घाल्या। ज़ोग आतमा कहाँ छ ताम, जोग ने कह्या जीव परिणाम ।।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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