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________________ ३३८ नव पदार्थ __ (१८) दुरभिगंधनाम : जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर अशुभ गंधवाला होता है उसे 'दुरभिगंधनामकर्म' कहते हैं। (१६) अशुभरसनाम : जिस कर्म के उदय से शरीर तिक्त आदि अशुभ रसवाला होता है उसे 'अशुभरसनामकर्म' कहते हैं। (२०) अशुभस्पर्शनाम : जो कर्म कर्कश आदि अशुभ स्पर्श का निमित्त होता है उसे 'अशुभस्पर्शनामकर्म' कहते हैं। (२१) उपघातनाम : जिस कर्म के उदय से जीव अपने अधिक या विकृत अवयवों द्वारा दुःख पावे अथवा जो कर्म जीव के उपघात-बेमौत मरण का कारण हो उसे 'उपघातनामकर्म' कहते हैं। (२२) नरकानुपूर्वीनाम : विग्रहगति से जन्मान्तर में जाते हुए जीव को आकाश प्रदेश की श्रेणि के अनुसार गमन कराने वाले कर्म को आनुपूर्वीनाम कहते हैं। जो कर्म नरक गति के सम्मुख गमन कराता है उसे 'नरकानुपूर्वीनामकर्म' कहते हैं। (२३) तिर्यञ्चानुपूर्वीनाम : जो कर्म जीव को तिर्यञ्च गति के सम्मुख गमन करावे उसे 'तिर्यञ्चानुपूर्वीनामकर्म' कहते हैं। (२४) अप्रशस्तविहायोगतिनाम : जो कर्म गति का नियामक हो उसे विहायोगतिनामकर्म कहते हैं | जो कर्म अशुभ गति उत्पन्न करे उसे 'अप्रशस्तविहायोगतिनामकर्म' कहते हैं। हाथी, वृषभ आदि की गति प्रशस्त और ऊंट, गधे आदि की गति अप्रशस्त कहलाती है। (२५) स्थावरनाम : जिस कर्म के उदय से जीव स्वतंत्र रूप से गमनागमन न कर सके उसे स्थावरनामकर्म' कहते हैं। पृथ्वी, अप्, वायु, तैजस और वनस्पतिकाय जीत इसी कर्म के उदयवाले होते हैं। उनमें स्वतंत्र रूप से गमन करने की शक्ति नहीं है। (२६) सूक्ष्मनाम : जिस कर्म के उदय से ऐसा सूक्ष्म शरीर प्राप्त हो कि जो चर्मचक्षु से देखा न जा सके 'सूक्ष्मनामकर्म' कहलाता है। कितने ही बादर पृथ्वीकायिक आदि जीव अदृष्टिगोचर होते हैं, पर असंख्य शरीरों के मिलने पर वे दिखाई देने लगते हैं। सूक्ष्म जीवों के असंख्य शरीर इकट्ठे हो जायें तो भी वे दिखाई नहीं देते। (२७) अपर्याप्तनाम : जिस कर्म के उदय से जीव स्वयोग्य पर्याप्तियाँ पूर्ण न कर सके और पहले ही मरण को प्राप्त हो उसे 'अपर्याप्तनामकर्म' कहते हैं। (२८) साधारणशरीरनाम : जिस कर्म के उदय से अनन्त जीवों का साधारण-एक
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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