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पाप पदार्थ : टिप्पणी ११
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(६) अर्द्धनाराचसंहनननाम : जिस कर्म के उदय से अर्द्धनाराचसंहन प्राप्त हो उसे 'अर्द्धनाराचसंहनननामकर्म' कहते हैं। जिस अस्थि-बंध में एक ओर मर्कट-बध हो और ऊपरी ओर अस्थि-कीलिका का बंध उसे अर्द्धनाराचसंहनन कहते हैं।
(१०) कीलिकासंहनननाम : जिस कर्म के उदय से कीलिकासंहनन प्राप्त हो उसे 'कीलिकासंहनननामकर्म' कहते हैं। जिस बंध में दोनों ओर अस्थियाँ अस्थि-कीलिकाओं से बंधी हो उसे कीलिकासंहन न कहते हैं।
(११) सेवार्तसंहनननाम : जिस कर्म के उदय से सेवार्तसंहनन प्राप्त हो उसे 'सेवार्तसंहनननामकर्म' कहते हैं। इस बंध में अस्थियों के किनारे परस्पर मिले होते हैं, उनमें कीलिका-बंध भी नहीं होता।
(१२) न्याग्रोधपरिमण्डलसंस्थाननाम : शरीर की विविध आकृतियों के निमित्त कर्म को संस्थाननाम कहते हैं। जिस कर्म के उदय से न्यग्रोधपरिमण्डलसंस्थान प्राप्त हो वह 'न्यग्रोधपरिमण्डलसंस्थाननामकर्म' कहलाता है। न्यग्रोध-वट । वटवृक्ष की तरह नाभि के ऊपर का भाग प्रमाणानुसार और लक्षणयुक्त हो और नीचे का भाग वैसा न हो उसे न्यग्रोधपरिमण्डलसंस्थान कहते हैं।
(१३) सादिसंस्थाननाम : जो कर्म सादिसंस्थान का निमित्त हो उसे 'सादिसंस्थाननामकर्म' कहते हैं। नाभि के नीचे के अंग प्रमाणानुसार और लक्षणयुक्त हों और नाभि के ऊपर के अंग वैसे न हों उसे सादिसंस्थान कहते हैं।
(१४) वामनसंस्थाननाम : जो कर्म वामनसंस्थान का हेतु हो उसे 'वामनसंस्थाननामकर्म' कहते हैं। हाथ, पैर, मस्तक और ग्रीवा प्रमाणानुसार और लक्षणयुक्त हों परन्तु छाती, उदर आदि अवयव वैसे न हों वह वामनसंस्थान है।
(१५) कुब्जसंस्थाननाम : जो कर्म कुब्जसंस्थान का हेतु हो उसे 'कुब्जसंस्थाननामकर्म' कहते हैं। हाथ, पैर, मस्तक और ग्रीवा प्रमाणानुसार और लक्षणयुक्त न हों बाकी अवयव वैसे हों वह कुब्जसंस्थान है।
(१६) हुंडसंस्थाननाम : जो कर्म हुंडसंस्थान का निमित्त हो उसे 'हुंडसंस्थाननामकर्म' कहते हैं। इस संस्थान में सब अवयव प्रमाणरहित और लक्षणहीन होते हैं।
(१७) अशुभवर्णनाम : जिस कर्म के उदय से शरीर कृष्णादिक अशुभ वर्णवाला होता । है उसे 'अशुभवर्णनामकर्म' कहते हैं।