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________________ ३१२ कर्म कहते हैं । इनमें मिथ्यात्व-मोहनीय सर्वघाती कहलाता है और अन्य दो देशघाती । चारित्र - मोहनीय कर्म दो प्रकार का होता है - (१) कषाय- मोहनीय और ( २ ) नो- कषाय- मोहनीय | कष अर्थात् संसार । आय अर्थात् प्राप्ति । जिससे संसार की प्राप्ति हो उसे कषाय कहते हैं। क्रोध, मान, माया और लोभ ये चार कषाय हैं। श्री नेमिचन्द्र लिखते हैं- " जीव के कर्म-क्षेत्र का कर्षक होने से आचार्यों ने इसे कषाय कहा है। इससे सुख तथा दुःख रूपी प्रचुर सस्य उत्पन्न होता है तथा संसार की मर्यादा बढ़ती है ।" जो कषाय के सहवर्ती सहचर होते हैं अथवा जो कषायों को उत्तेजित करते हैं उन हास्य, शोक, भय आदि को नो-कषाय कहते हैं। इसके स्थान में दिगम्बर ग्रन्थों में अकषाय का प्रयोग है । नो-कषाय अथवा अकषाय का अर्थ कषाय का अभाव नहीं होता पर ईषत् कषाय है । हास्य आदि स्वयं कषाय न होकर दूसरे के बल पर कषाय बन जाते हैं। जैसे कुत्ता स्वामी का इशारा पाकर काटने दौड़ता है और स्वामी के इशारे से ही वापस आ जाता है उसी तरह क्रोधादि कषायों के बल पर ही हास्यादि नो- कषायों की प्रवृत्ति होती है, क्रोधादि के अभाव में ये निर्बल रहते हैं। इसलिए इन्हें इषत्कषाय, अकषाय या नो-कषाय कहते हैं" । कषाय- मोहनीय सोलह प्रकार का है और (२) नो- कषाय- मोहनीय सात अथवा नौ प्रकार का । १. गोम्मटसार ( जीव-काण्ड) : २८२ : सुहुदुक्खसुबहुसस्सं कम्मक्खेत्तं कसेदि जीवस्स । संसारदूरमेरं तेण कसाओत्ति णं बेंति । । २. कषायसहवर्तित्वात्, कषायप्रेरणादपि । हास्यादिनवकस्योक्ता, नोकषायकषायता ।। ३. सर्वार्थसिद्धि ८.६ ईषदर्थ नञ्यः प्रयोगादीषत्कषायोऽकषाय इति । ४. तत्त्वार्थवार्त्तिक ८.६.१० ५. (क) उत्त० ३३.१०-११ : नव पदार्थ चरित्तमोहणं कम्मं दुविहं तं वियाहियं । कसाय मोहणिज्जं तु नोकसायं तहेव य ।। सोलसविहभेएणं कम्मं कसायजं । सत्तविहं नवविहं वा कम्मं च नोकसायजं । । (ख) प्रज्ञापना २३.२
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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