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________________ पाप पदार्थ : टिप्पणी २ २६५ प्रथम कथन : (क) तालाब के नाला होता है, उसी तरह जीव के कर्म-हेतु होते हैं। (ख) मकान के द्वार होता है, उसी तरह जीव के कर्म-हेतु होते हैं। (ग) नाव के छिद्र होता है, उसी तरह जीव के कर्म-हेतु होते हैं। द्वितीय कथन : (क) तालाब ओर नाला एक होता है उसी तरह जीव और कर्म-हेतु एक हैं। (ख) मकान और द्वार एक होता है उसी तरह जीव और कर्म-हेतु एक हैं। (ग) नाव और छिद्र एक होता है उसी तरह जीव और कर्म-हेतु एक हैं तृतीय कथन : (क) जिससे जल आता है वह नाला होता है, उसी तरह जिससे कर्म आते हैं वे कर्म-हेतु हैं। (ख) जिससे मनुष्य आता है वह द्वार है, उसी तरह जिससे कर्म आते हैं वे कर्म-हेतु (ग) जिससे जल भरता है वह छिद्र कहलाता है, उसी तरह जिससे कर्म आते हैं वह कर्म-हेतु हैं चतुर्थ कथन : (क) जल और नाला भिन्न हैं, उसी तरह कर्म और कर्म-हेतु भिन्न हैं। (ख) मनुष्य और द्वार भिन्न हैं, उसी तरह कर्म और कर्म-हेतु भिन्न हैं | (ग) जल और नौका के छिद्र भिन्न हैं, उसी तरह कर्म और कर्म-हेतु भिन्न हैं। पंचम कथन : (क) जल जिससे आवे वह नाला है पर नाला जल नहीं, उसी तरह जिनसे कर्म ____ आवें वे हेतु हैं पर कर्म-हेतु नहीं। (ख) मनुष्य जिससे आवे वह द्वार है पर मनुष्य द्वार नहीं, उसी तरह जिनसे कर्म आवें वे हेतु हैं पर कर्म-हेतु नहीं। (ग) जल जिनसे आवे वह छिद्र है पर जल छिद्र नहीं, उसी तरह जिनसे कर्म आवें वे हेतु हैं पर कर्म-हेतु नहीं।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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